{ दशहरा,सत्य, नवरात्रि,शरद, गरबा }
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✍️ शब्दकार ©
🚩 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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बसी बुराई दस बड़ी,हुआ हरण संहार।
वही दशहरा है 'शुभम',मना रहे नर-नार।।
रावण के दस सिर नहीं,मन के थे दस दोष।
बना दशहरा पर्व ये, जगा राम का रोष।।
हुई असत पर सत्य की,जीत राम की मीत।
लंकापति की ढह गई,कंचन निर्मित भीत।।
सत्य कभी झुकता नहीं, है असत्य की हार।
खुल जाते सौभाग्य के, बंद पड़े सब द्वार।।
माता दुर्गा की करें,आराधन नर - नार।
कहलाती नवरात्रि ये, देती हैं जन तार।।
तन-मन निज पावन रखें,करें न तामस भोग
जब आतीं नवरात्रियाँ, ब्रह्मचर्य का योग।।
शरद- चंद्रिका खिल उठी,तारे करते खेल।
स्मित-आभा चंद्र की,करती है प्रिय मेल।।
शरदागम ज्यों ही हुआ,खिला प्रकृति का रंग
नहीं उष्ण शीतल बहुत,नील गगन का संग।।
भक्ति- नृत्य गरबा रहा,मचा माधुरी धूम।
बजती है ध्वनि ढोल की,रही गगन को चूम।
घट सछिद्र सज्जित किया,पल्लव सुंदर फूल
गरबा करतीं नाचकर,परितः निज को भूल।
शरद दशहरा सत्य की,
है असत्य पर जीत।
गरबा करतीं बालिका,
शुभ नवरात्रि सगीत।।
🪴 शुभमस्तु !
१३.१०.२०२१◆११.४५
आरोहणं मार्तण्डस्य।
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