■■◆■■◆■■◆■■◆■■◆■■
✍️ व्यंग्यकार ©
💰 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
■■◆■■◆■■◆■■◆■■◆■■
बचपन से लेकर अभी तक यह सुनता आ रहा हूँ कि दीपावली धन की देवी :लक्ष्मी जी का त्यौहार है।ज्यों- ज्यों बड़ा(आयु से ,बुद्धि से नहीं) होता गया , त्यों - त्यों यह अनुभव किया कि आदमी की धन के प्रति लालसा निरंतर बढ़ती ही चली जा रही है।धन के लालच औऱ तृष्णा के विरुद्ध उपदेश करते- करते कितने ही आशाराम औऱ राम रहीम जैसे 'महान संत' जन कारागार में (चैन की या बेचैन की) वंशी बजाते हुए वहाँ की शोभा में चार नहीं चौदह चाँद लगा रहे हैं, यह अभी शोध का विषय है।परंतु उन्होंने अपनी सभी सुंदरी शिष्याओं,कुमारियों ,बालाओं, और उनके माता- पिताओं को यही 'सदुपदेश' दिया कि धन का त्याग करो और धन से विरक्त हो जाओ। जितना भी धन है ,हमें दे जाओ। सुखी रहोगे। परिणाम यह हुआ कि आश्रमों में अपार धन वर्षा होने लगी।और उधर उनकी बारहों मास ,365 दिन, चौबीसों घण्टे घनघोर दीवाली मनने लगी ।बाबाजी की दीवाली मनवाने के चक्कर में बहुत से भक्तों के दीवाले निकल गए।
यह भी सुना और पढ़ा गया है कि मानव के लिए धर्म ,अर्थ ,काम औऱ मोक्ष ; ये चार ही पुरुषार्थ हैं। परंतु इनमें से सर्वाधिक शक्तिशाली पुरुषार्थ अर्थ अर्थात धन ही है। यदि धन है तो जीवन है, काम भी है।जीवन है तो धर्म है , और मोक्ष तो बेचारा जीते जी किसी ने देखा नहीं है।अब शेष तीन ही रह जाते हैं, जिनकी जड़ें धन की धरती में समाई हुई हैं।धन ही जीवन जीने का प्रमुख आधार भी है।आदर्श वादी संत जन और उपदेशक मन से तो धन ही चाहते हैं ,किंतु दिखावे के लिए धन का विरोध करते हुए देखे जाते हैं। पूजा,पाठ, ग्रंथ,भेंट, फूल, फ़ल, माला ,धूप ,अगरबत्ती आदि सब धन से ही प्राप्त हो पाते हैं। मन की कौन जाने।वह भी मोक्ष की तरह किसी ने देखा नहीं है। इसलिए मन में धन की कामना पालकर भी आप धार्मिक बने रह सकते हैं। धन के प्रति पूर्ण एकाग्रता औऱ समर्पण ही उसे समाज में मुँह दिखाने योग्य रख पाता है। निर्धन को भला पूछता भी कौन है ?
सुना है कि लक्ष्मी काली भी होती है।काले कारनामों से काली औऱ गोरे कामों से गोरी लक्ष्मी आती है। पर आज के आदमी को इससे कोई भी लेना -देना नहीं है कि लक्ष्मी का रंग काला है ,गोरा है अथवा लाल है। उसे जिस किसी भी प्रकार से मिले जिस रंग कि भी मिले , लक्ष्मी ही चाहिए। यों तो लक्ष्मी अर्थात धन वर्षा के अनेक प्रकार के रंग-बिरंगे बादल हैं ,जहाँ से धन - वर्षा हो जाती है। हो ही रही है। जैसे: चोरी ,डकैती,अपहरण,ग़बन ,राहजनी, लूट, मिलावट खोरी,रिश्वत ,कमीशनखोरी, आदि अनेक स्रोत हैं। सड़क,पुल,भवन निर्माण आदि में सीमेंट की जगह बालू से भी लक्ष्मी वर्षा हो सकती है। किंतु ऐसा धन - अमृत कब विष तुल्य बन जायेगा, कहा नहीं जा सकता और वह दुर्घटना, बीमारी, अस्पताल, डॉक्टर, दवाओं की मोरी से निचुड़ जायेगा ,पता नहीं चलेगा !
लक्ष्मी अर्थात धन की सवारी उल्लू कहलाता है। कहने का अर्थ यह है कि जिसमें जितना अधिक उल्लूपन है , उतना ही बड़ा धन वर्षा का अधिकारी है। कलयुग में धन ही अमृत है। इसलिए इसे अमृत वर्षा भी कह सकते हैं।जब आदमी को अमृत ही मिल गया , फिर तो वह अमर हो गया। पर क्या कीजिए :
अमर सिंह तो मर गया,लक्ष्मी माँगे भीख।
उपदेशों से ज्ञान ले,मान बड़ों की सीख।।
ज्ञानी महा पुरुषों से यह भी सुना गया है कि 'जब आवे संतोष-धन सब धन धूरि समान।' इससे यही लगता है।कि सोने - चाँदी के धन के अलावा भी कुछ और भी धन के प्रकार हुआ करते हैं। पर ऐसे कितने महापुरुष/महानारियाँ हैं ,जिन्हें किसी अन्य प्रकार की धन - वर्षा से तृप्ति होती हो।संतोष भी भला कोई धन है ! यह तो बे-दाँत वालों का हलुआ , जब काला ,पीला ,सफेद नहीं ,तो इससे से काम चलायें। अरे भला ! सन्तोष से किसके पेट का गड्ढा भरा है ? सबको अपने घर में धन की अपार वर्षा चाहिए ही। चाहे उसके कर्म भले ही कितने पातालदर्शी हों।
बिना पसीना बहाए , बिना दिमाग लगाए, सबको धन की वर्षा चाहिए। इतना सुनते ही एक बोल पड़ा : 'क्या चोर ,मिलावटखोर, रिश्वतखोर ,राहजन, गबनकर्ता ,लुटेरे, डाकू :इन सबको दिमाग नहीं लगाना पड़ता ? जरूर लगाना पड़ता है । ' बीच में उसकी बात कब प्रतिवाद करते हुए मैंने पूछा: ' किंतु किसी की आत्मा पर छुरी चलाकर । यदि इससे ही तुम्हारी आत्मा प्रसन्न रहती है ,तो ऐसी लक्ष्मी क्या परिणाम देगी।भविष्य ही बताएगा।' बेचारे के पास इसका कोई उत्तर नहीं था। प्रायः लोग ऐसी ही धन लक्ष्मी की वर्षा की चाहत में जीते-मरते हैं। लक्ष्मी का वाहन उल्लू जो है !
🪴 शुभमस्तु !
३१.१०.२०२१ ७.३० पतनम मार्तण्डस्य.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें