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✍️ शब्दकार ©
📜 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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बहाना
एक धोखे की टटिया है,
बहानेबाजों की सोच
बड़ी घटिया है,
डुबा देता वह सत्य की
सदा से लुटिया है,
झूठ के हाथ में
सत्य की चुटिया है।
चली अभिसार को
प्रेयसि करके एक
सुंदर - सा बहाना,
मुझे है आज अभी
अपनी सहेली के घर जाना,
यथार्थ था परंतु
यही कि उसे करना था
प्रेमी के सँग नाच - गाना,
अपने अभिसार का
ताता - थैया मचाना,
कहलाता है यही
मीत पावन बहाना।
राजनीति का बहाना
एक सुंदर निशाना,
आम जनता को
पीसना पिसवाना,
विकास की दुहाई
बढ़ा रही नित मँहगाई,
अतीत का कर्ज़,
बढ़ा रहा जनता का मर्ज़,
मर्जी उनकी,
बहाने की चर्खी
असली या फर्जी,
नेताओं की खुदगर्जी,
निपट नहीं पाना,
एक से एक
नवीनतम बहाना।
संतति के
माता- पिता को,
कर्मचारी के
स्व अधिकारी को,
शिष्य-शिष्याओं के
शिक्षक को,
हजारों बहाने,
निरंतर बहाने।
नदियों में अपने
घर का कचरा बहाना,
कारखानों का मलवा
सरिताओं सरों में लुढ़काना,
मुर्दों की राख अस्थियाँ
गंगा में बहाना,
फिर सरकारों का
प्रदूषण - विनाश का बहाना।
गोबर पर तरतीब से
मक्खन क्रीम से सजाना,
जैसे काली दुल्हन को
ब्यूटी पार्लर में सजाना,
एक से एक अनेक 'शुभम'
सजे - धजे हैं बहाना,
बहाना ही बहाना !
बहाना ही बहाना!!
🪴 शुभमस्तु !
२९.१०.२०२१◆११.१५ आरोहणं मार्तण्डस्य।
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