शनिवार, 23 अक्तूबर 2021

प्राणप्रिया 💋 [ गीत ]


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✍️ शब्दकार ©

💋 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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प्राणप्रिया  की   करूँ आरती।

पाप-शाप अघ-ओघ मारती।।


जा बजार   से   करवा लाती।

छत पर करवा चौथ मनाती।।

घर भर  के   संताप   वारती।

देवी - सी बन   मुझे  तारती।।

प्राणप्रिया की  करूँ आरती।।


कभी तीर-सी  उसकी बोली।

और कभी मिश्री-सी घोली।।

चंडी का भी    रूप   धारती।

रमा  रूप में   घर  सँवारती।।

प्राणप्रिया की करूँ आरती।।


सुत  मम सुता उसी के जाए।

जो मेरी   संतति   कहलाए।।

भूली  पीहर   प्रिया  भारती।

घर के रथ की वही  सारथी।।

प्राणप्रिया की करूँ आरती।।


कहती मुझको  अपना चंदा।

एकमात्र  मैं   उसका  बंदा।।

काजल दीवट  जला पारती।

बुरी नजर के  दोष  वारती।।

प्राणप्रिया की करूँ आरती।।


घर   की    अन्नपूर्णा   माता।

प्राणप्रिया के मैं गुण गाता।।

हिम्मत को वह  नहीं हारती।

बन जाती है कभी ज्यारती।।

प्राणप्रिया की करूँ आरती।।


पायल पग में रुनझुन बजती।

कर शृंगार देवि -सी सजती।।

दारुण दुख दस गुणा जारती।

सगुण पूजती  दोष   गारती।।

प्राणप्रिया की करूँ आरती।।


दिनभर करवा  चौथ   मनाए।

बिना पिए  जलकण रह जाए।

छलनी में मम छवि निहारती।

'शुभम' दीप आरति उतारती।

प्राणप्रिया की  करूँ आरती।।


🪴 शुभमस्तु !


२३.१०.२०२१◆ ६.१५ 

पतनम मार्तण्डस्य।

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