मंगलवार, 12 अक्तूबर 2021

गोली पर गोली चढ़ी! 💊🟠 [ कुंडलिया ]


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✍️ शब्दकार ©

☘️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                        -1-

नीचे   भीषण   गंदगी, ऊपर जन     बीमार।

रोग स्वयं जन पालते,बढ़ता ज्वर का ज्वार।

बढ़ता ज्वर का ज्वार,खा रहे भर-भर झोली।

सुइयाँ  चुभतीं   देह, हजारों कड़वी गोली।।

'शुभम' देश  बदहाल,रहे धन नित्य  उलीचे।

घर -घर पड़तीं खाट, पड़े कुछ भू पर नीचे।।


                        -2-

ऐसा   कोई  घर नहीं,जहाँ न हों    बीमार।

सिर पर बोझा ढो रहे,खुले रोग  के  द्वार।।

खुले  रोग  के  द्वार,प्रकृति  से रखते  दूरी।

लें  गोली   कैप्सूल, पड़ी  ऐसी  मजबूरी।।

'शुभम' देह  विकलांग,चाहते करते   वैसा।

दूषण  से  है  प्यार, क्यों न हो रोगी   ऐसा।।


                        -3-

भोजन जल बेस्वाद है, विष - रस से भरपूर।

कृत्रिम से ही नेह अति,कुदरत से अति दूर।।

कुदरत  से  अति  दूर, तेज  है जीवन  तेरा।

फ़ूड  फ़टाफ़ट  पेट,  रोग   ने डाला    डेरा।।

'शुभम'  दवा का बोझ, रोग ही देता   रोदन।

बौनी  होती देह,खा रहा विष का  भोजन।।


                        -4-

गोली  पर  गोली  चढ़ी,अड़े बीच   कैप्सूल।

नीचे  नारी   पूत  सँग, उसके नीचे    धूल।।

उसके  नीचे  धूल ,  प्रदूषण फैला    भारी।

घुसता तन-मन  बीच, बढ़ी घातक बीमारी।।

'शुभम' आदमी  मूढ़, विषों की खेले  होली।

भोजन    छूटा  दूर, भखे  गोली पर  गोली।।


                        -5-

खाकर कैमीकल मरे,मनुज आज का मीत।

भोजन, सब्जी, दूध में,  देह गई   है   रीत।।

देह  गई  है   रीत,  प्रदूषण पैदा     करता।

कर्महीन  की  सोच, प्राण अपने नर  हरता।।

'शुभम'   घरों  में बंद,देह ए सी  की  पाकर।

क्षार हुआ है गात,विषज भोजन को खाकर।


🪴 शुभमस्तु !


१२.१०.२०२१◆११.४५आरोहणं मार्तण्डस्य।


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