मंगलवार, 19 अक्तूबर 2021

शरद पूर्णिमा 🌝 [ मुक्तक ]


■●■●■●■●■●■●■●■●■●

✍️ शब्दकार ©

🌝 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

■●■●■●■●■●■●■●■●■●

                        -1-

क्वार - मास   की  पूनम आई,

नर - नारी    के   मन  को भाई,

शरद पूर्णिमा   कला सोलहों,

धारित  शशि  को  लिए सुहाई।


                        -2-

शरद - आगमन   उस  दिन होता,

मुस्काता        चंद्रमा       उदोता,

शरद पूर्णिमा  की निशि मोहक,

लगता   चाँद    ले     रहा गोता।


                        -3-

चाँद    निकटतम  आज  धरा के,

अंबर  से     अमृत    बरसा   के,

शरद    पूर्णिमा    महारास   से-

सम्मोहित    वंशीधर    पा   के।


                         -4-

चंद्र   देव    की     पूजा   कर लें,

शिव -गिरिजा   को  उर में धर लें,

सँग    में   पूजें    पुत्र    षडानन, 

शरद   पूर्णिमा  प्रभा  सुघर  लें।


                         -5-

खीर    बना    प्रसाद   हम  खाते,

अमृत      सोम     देव    बरसाते,

शरद पूर्णिमा       ही कोजागरि,

चंद्र      सुधाकर     भी कहलाते।


🪴 शुभमस्तु !


१९.१०.२०२१◆११.१५ आरोहणं मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...