गुरुवार, 7 अक्तूबर 2021

जब है पास मेरे माँ! 🚩 [ अतुकांतिका ]


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✍️ शब्दकार ©

🚩 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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जब पास मेरे माँ

भला भय है मुझे किसका!

खड़ा हो शेर भी माँ का,

नहीं वह क्रोध भर ताका,

नयन नत कर के

वह झाँका।


महिषासुर मद - मर्दिनी,

शुम्भ निशुम्भ - संहारिणी,

पाप-ताप तारिणी,

रोग - शोक निवारिणी,

शूल ,पिनाकधारिणी,

चण्डमुण्ड विनाशिनी,

सर्व शास्त्र -शस्त्रधारिणी,

सबका कल्याण कर माँ।


म्लेच्छ- क्लेश है महा,

नहीं जाता  है वह  सहा,

जगत सारा है दहा,

रक्त मानव का बहा,

रख ले मनुज की लाज माँ।


कुछ ही घड़ी का खेल है,

मानव-म्लेच्छ का क्या मेल है?

मनुज में है   अति दया,

वह क्रूरता में हिंस्र- सा,

खड्ग  तेरा है कहाँ, 

तू आ चली आ दुर्गमा।


तीक्ष्ण त्रिशूल चाहिए,

शांति जग में छा सके,

मानव अस्तित्व बचा सके,

पर्वतों से नीचे उतर माँ,

रक्षित हों सज्जन मनुज माँ,

कर दर्प का संहार माँ।


🪴 शुभमस्तु  !


०७.१०.२०२१◆३.३० पत नम मार्तण्डस्य।

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