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✍️ शब्दकार ©
🚩 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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जब पास मेरे माँ
भला भय है मुझे किसका!
खड़ा हो शेर भी माँ का,
नहीं वह क्रोध भर ताका,
नयन नत कर के
वह झाँका।
महिषासुर मद - मर्दिनी,
शुम्भ निशुम्भ - संहारिणी,
पाप-ताप तारिणी,
रोग - शोक निवारिणी,
शूल ,पिनाकधारिणी,
चण्डमुण्ड विनाशिनी,
सर्व शास्त्र -शस्त्रधारिणी,
सबका कल्याण कर माँ।
म्लेच्छ- क्लेश है महा,
नहीं जाता है वह सहा,
जगत सारा है दहा,
रक्त मानव का बहा,
रख ले मनुज की लाज माँ।
कुछ ही घड़ी का खेल है,
मानव-म्लेच्छ का क्या मेल है?
मनुज में है अति दया,
वह क्रूरता में हिंस्र- सा,
खड्ग तेरा है कहाँ,
तू आ चली आ दुर्गमा।
तीक्ष्ण त्रिशूल चाहिए,
शांति जग में छा सके,
मानव अस्तित्व बचा सके,
पर्वतों से नीचे उतर माँ,
रक्षित हों सज्जन मनुज माँ,
कर दर्प का संहार माँ।
🪴 शुभमस्तु !
०७.१०.२०२१◆३.३० पत नम मार्तण्डस्य।
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