शनिवार, 30 अक्तूबर 2021

गीतिका 🍀

  

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✍️ शब्दकार ©

🐒 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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देश     कौन    पहचाना    है।

भारत     माता     माना   है।।


साड़ी     खींच    रहा    कोई,

रूपसि    का      दीवाना   है।


लूट      मचाता      है    नेता ,

वह    तो    घाघ    पुराना  है।


धन    के     लालच   में  डूबा,

समझा     लूट - खजाना   है।


देशभक्ति      का    नारा   ही,

उसका     छद्म     तराना   है।


बाहर   लकदक   बगुला - सा,

भीतर      काला     बाना   है।


आदर्षों      की     बात    करे,

स्वयं   राम   बन    जाना   है।


बनते   मिट्ठू    मियाँ    सभी,

किंतु   ग़ज़ब    ही  ढाना   है।


अति - रावण  हर  गली बसे,

रावण  उन्हें     जलाना    है।


🪴 शुभमस्तु !


३०.१०.२०२१◆ ६.००

पतनम मार्तण्डस्य।

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