रविवार, 3 अक्तूबर 2021

ये स्व घोषित देशभक्त 👑 [ दोहा ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🙉 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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अपनी-अपनी  पीठ पर,थपकी  देते रोज।

देशभक्त बनते स्वयं, मिले बिना ही खोज।।


कोरे   झूठे   आँकड़े, दिखलाते   अखबार।

सड़कें कागज़ पर बनी,खड़क रही है कार।।


पंचसितारा    सेज  पर,बीते जिनकी  रात।

देशभक्त   रंगीन   वे, करें धर्म की     बात।।


त्राहि - त्राहि  जनता  करे, मँहगाई की मार।

जातिवाद  से  वोट का,पड़ता है    गलहार।।


गाली गांधी को मिले, जन्मदिवस पर फूल।

मुख से भारत  भक्त हैं, उर में उगते   शूल।।


मतमंगों    को  चाहिए, हर मत  झाड़ूमार।

चुभें  भले  हर  देह में,तीखे विष  के खार।।


पिछड़े अनुसूचित नहीं,रखते कुछ अधिकार

हिंदू पिछड़ी जाति के,चुभते तन में खार।


हिंदू कह   फुसला रहे,पिछड़ा या  अस्पृश्य।

मत पाने  के बाद में, बदले पट  का   दृश्य।।


साठ साल में  कूदकर, चढ़े प्रगति -सोपान।

शून्य विगत  इतिहास था,करें हमारा  मान।।


हमनेअब तक जो किया,कर न सकेगा और।

हम ही तो अभिजात्य हैं,भारत के सिरमौर।।


अमरीका   में  बज   रहे, बड़े सुहाने    ढोल।

लगें  दूर   से  मधुर वे,  उनके प्यारे    बोल।।


पिछड़े   सब पिछड़े  रहें,यही मूल  मन-मंत्र।

कुचलें अगड़े सब उन्हें,सत्य यही जनतंत्र।।


जिस दिन फूटे फूट ये,जन का प्रबल गुबार।

'शुभम' मिटेगा देश ये, जातिवाद  से   हार।।


समझे   बैठे   मूढ़   जो, जाए तरनी    बूड़।

दाल  उपानह  में बँटे,रहें न सिर  के  कूड़।।


जाग गया  है देश ये,किया जाति   ने   हीन।

फिर मत कहना आदमी, धमकाता है चीन।।


🪴 शुभमस्तु !


०२.१०.२०२१◆ ८.०० पतनम मार्तण्डस्य।


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