सोमवार, 4 अक्तूबर 2021

पावन शब्द- शृंगार 🌾 [ दोहा ]

 

[सत्य,अहिंसा,धर्म,सदाचार ]

              

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✍️ शब्दकार ©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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सत्य-सत्य की रट लगी,सदा झूठ के साथ।

ऐसे  नर  को  देखकर, विधना ठोके  माथ।।


हुआ पलायन सत्य से,राजनीति के धाम।

पूर्व कहें पश्चिम चलें,सत पर लगा विराम।।


सत्य-पथी मानव वही,नर तन में वह देव।

अंश मात्र डिगता नहीं,करता मानव सेव।।


मनसा, वाचा, कर्मणा,नहीं करे आघात।

कहें अहिंसा हम उसे,दिन हो चाहे रात।।


बात अहिंसा की करे,गाली का तालाब।

हिंसा की  दुर्गंध  से, गंधित  है दरियाब।।


धारण हम जिसको करें,वही धर्म है मीत।

परहित  में नित रत रहें,निश्चय होगी जीत।।


आडंबर  से धर्म का,नहीं तनिक   संबंध।

चलता रेवड़ भेड़ का,पीछे बनकर  अंध।।


धर्म- धर्म चिल्ला रहे,  जोड़े पत्थर    ईंट।

कर्मकांड सब बाहरी, मन में कीचड़ छींट।।


सदाचार से  मनुज की,रहे मनुजता   शेष।

सबको जानें आप सम,बनें न अंधी    मेष।।


सदाचार छोड़ा जहाँ,मानव बनता  वन्य।

दुराचार में लीन जो,पशु ही एक  अनन्य।।


सदाचरण में निरत जो,करता जग सम्मान।

ढोंगी को सब जानते, कर में तीर-कमान।।


सत्य,अहिंसा,धर्म के,रखते सँग हथियार।

सदाचार ही सार था,बापू जी  का   प्यार।।


🪴 शुभमस्तु !


०४.१०.२०२१◆१०.३० आरोहणं मार्तण्डस्य।

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