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✍️ शब्दकार ©
🚤 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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हे मृगनैनी ! बाले तेरे;
नयन - तीर हैं पैने कितने!
सरि के भीतर लक्ष्य साधतीं;
हम हैं हैरां भारी इतने!!
अपनी तरनि बिठाकर हमको;
पार लगा दो 'शुभम' नदी से,
मत्स्य - बेध मत करो तीर से,
हमें बेध डाला है तुमने!१।
दृष्टि हुई एकाग्र तुम्हारी;
जल के तल पर मादक बाला!
हिंसा करो नहीं मछली की;
घायल उर लख चल मधुशाला,
नाव न खो दे चल पथ अपना;
भटक न जाओ सोचा मैंने,
एक दृष्टि जो इधर घुमाओ;
बरस रही दृग से ही हाला।२।
तुम्हें देख हे रमणी! बाले!!
वन की शोभा लजा रही है,
चली अकेली वन- प्रान्तर में;
नाव लिए प्रिय फ़िजा बही है,
लक्ष्य किसी मछली पर तेरा;
नहीं डगमगाए तव नैया,
एक पंथ दो काज तुम्हारे;
लगती करनी हमें सही है।३।
पथिक नहीं हैं साथ तुम्हारे;
अपने सँग में हमको ले लो,
नाव लिए आखेट कर रहीं;
आओ जल में सँग में खेलो,
काम नहीं ये तीर चलाना;
हे मधुबाले ! हे रसरंगिनि!
आओ 'शुभम ' किनारे बैठें,
पंथ अकेली तुम क्यों झेलो?४।
रूप तुम्हारा देख मत्स्य भी;
हो जाएँगी मोहित सारी,
तुम बेधड़क बेध डालोगी;
कष्ट रहेगा हमको भारी,
पकड़ो चप्पू 'शुभम' हाथ में;
आओ सरिता पार करा दो,
देख प्रकृति भी रूप कामिनी,
वन के पेड़ लताएँ हारी।५।
🪴 शुभमस्तु !
०५.१०.२०२१◆११.००आरोहणं मार्तण्डस्य।
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