रविवार, 3 अक्तूबर 2021

ग़ज़ल 🕯️

  

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✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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राजनीति  गरमाने   के   दिन।

सच को भी शरमाने के दिन।।


जाल   बिछाया   दाने   डाले,

चिड़ियों को भरमाने के दिन।


आसमान   पर   है    मँहगाई,

जनता  को गरमाने  के  दिन।


कर की  मार  सहन करनी है,

वादा किया घुमाने  के दिन।


गाल बज   रहे  धूम - धड़ाका,

अपनी सब  मनमाने  के दिन।


मतमंगे   आ   गए   गली   में,

खाने और   कमाने  के दिन।


चमचे 'शुभम'   लुभाने   आए,

अपने पाँव चुमाने    के  दिन।


🪴 शुभमस्तु !


२६.०९.२०२१◆१.१५पतनम मार्तण्डस्य।

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