रविवार, 24 अक्तूबर 2021

महका तन का चंदन 🦢 [ छंद:माहिया /टप्पा ]


छंद विधान:

१.तीन पंक्ति का मात्रिक व  लय प्रधान गेय छंद।

२.प्रथम ,द्वितीय व तृतीय पंक्ति में क्रमशः १२,१० एवं १२ मात्राएँ।

३.मिसरे के अंत में गुरु  अनिवार्य।

४.पहला और तीसरा चरण तुकांत।

५.तीनों चरणों का आदि व अंत गुरु से।

६.रगण 212 अमान्य।

सगण 112 एवं भगण 211 मान्य।

७. पंक्ति 1 एवं 3 में कल बाँट में 06 द्विकल(२+२+२+२+२+२)

तथा पंक्ति 2 में पाँच द्विकल हों।

८.एक गुरु( 2  )को दो लघु ( 1 1 )में तोड़ा जा सकता है।

९.प्रेमी-प्रेमिका की नोंक - झोंक के साथ साथ अब अन्य विषय भी मान्य।

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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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 निकला रवि  का गोला

चहक उठीं चिड़ियाँ

लगता  है   रवि   भोला।1।


याद     तुम्हारी     आती

रह -   रह  कर  पिछली

सुधियाँ मन को  भाती।2।


उड़ती - सी मधुबाला

उचक -उचक चलती

इठलाती   मद हाला।3।


महका तन   का  चंदन

मह - मह  बस   जाता

करता  मैं  अभिनंदन।4।


कोण    उभार   सजे   हैं

रचना      नई         बनी

छूकर   नहीं    तजे  हैं ।5।


शरद - चंद्रमा  आया

लजाती     चाँदनी

समा  मनहर   सुहाया।6।


वियोगिनी    उदास    है

पंथ   वह     निहारे 

चाँदनी  सु- प्रकाश  है।7।


कामिनि   को  मद  छाया

पास  नहीं  काम्य

चल पड़ा  स्मरण आया।8।


हो  गए    दो   से   चार

नयन  युगल  दोनों 

करते  हुए  अभिसार।9।


कुंडी     बजाती    रही

समझें   वे    मुझको

करते  सजन  बतकही।10।


🪴 शुभमस्तु !


०८.१०.२०२१◆७.४५

पतनम मार्तण्डस्य।

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