बुधवार, 1 जून 2022

पारिजात मनमीत ला 🌿 [ दोहा ]


[मनमीत,परिजात,प्रपात,अंगार,उपवास]

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 ✍️शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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        💎 सब में एक 💎

विपदा की जब हो घड़ी,कठिन परीक्षाकाल।

जो सच्चा मनमीत है,बनता  सुदृढ़   ढाल।।

जहाँ  स्वार्थ ही मीत हो,दुर्लभ है   मनमीत।

वहाँ  पराजित मित्रता,स्वार्थ रहा है जीत।।


पारिजात पावन  सुमन, दे चिरयौवन  दान।

विष्णुप्रिया को पूजते,मानव सफल सुजान।

कृष्णप्रिया प्रिय रुक्मिणी,के हित पौधा एक।

पारिजात का सौंपते,काज कृष्ण का नेक।।


हिमगिरि से झरते हुए, अविरल सघन प्रपात

तृप्त नयन  मेरे युगल, देख सुभग   भूसात।।

जल प्रपात पर चंद्रिका,का हो पतित प्रकाश

तन-मन की हर वेदना,का होता तम  नाश।।


जेठ  मास मध्याह्न का,रवि- अंगार   सुतेज।

स्वेदसिक्त हो कामिनी, की कोमलतम सेज।

बाहर - भीतर से जले, पहले तन   अंगार।

तभी जलाता अन्य को,करके अनल प्रहार।।


जब तक  इष्ट न पास में,क्या तेरा उपवास!

रसना  के सब स्वाद  हैं,तेरी मिथ्या आस।।

यदि होता उपवास ये, दल फल खा या घास

गाय, भैंस या भेड़ का,नित होता उपवास।।


  💎  एक में सब  💎

जलते    हैं   अंगार  तन,

                         झरते  नैन- प्रपात।

पारिजात   मनमीत ला,

                        है उपवास  प्रभात।।


🪴शुभमस्तु !


०१ जून २०२२◆६.३० आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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