नाम :प्रजातंत्र,
काम: नेतातंत्र ,
कहने को स्वतंत्र,
पर अभिव्यक्ति के लिए
प्रतिबद्ध परतंत्र,
कैसा विचित्र असामंजस्य
जनता -नेता का ,
जनता कोई जाल नहीं
तंत्र नहीं,
इसलिए जनतंत्र नहीं,
तंत्र केवल नेता का
जिसमें पखेरूओं की तरह
जन गण जाल ग्रस्त
मस्त नहीं
पस्त ही पस्त,
त्रस्त ही त्रस्त,
मिथ्या आश्वस्त ,
प्रयोग की वस्तु,
उसके बाद तिरस्कृत,
बहिष्कृत,
प्रक्षिप्त,
अविश्वस्त ।
क्या यही प्रजातंत्र है,
नहीं ये पूर्णत नेतातंत्र है!
खुश करने के लिए
रख दिए गए नाम,
पर जनतंत्र में एक ही काम
बस मतदान के दिन आ जाए
अपने काम।
क्योंकि उसके मत का ही
तो मूल्य है,
इसलिए नेता तंत्र में
नेता के लिए
कार्यकर्ता , भक्त औऱ
चमचा देवतुल्य है।
बस पीछे पीछे चलते रहो,
अपनी वेदना भी न कहो,
सब कुछ अन्याय
शोषण सहो,
पानी में डूबो
या अनल में दहो,
ऋणात्मक तापमान में भी
सेना बनकर रहो,
रोना रोते रहो।
क्या यही प्रजातंत्र है?
ये सब झूठा
मोहन मारण
उच्चाटन तंत्र है,
सम्मोहन भी जन का,
मारण भी जन का,
उच्चाटन भी जन का,
इसीलिए इसका नाम
प्रजातंत्र है!
हा! हा !! हा!!!
हा! हा!! हा !!!
💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🍀 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें