आओ बच्चो ! हम सब
खेलें कुर्सी ! कुर्सी !!
मेरी कुर्सी ! मेरी कुर्सी !!
मेरी कुर्सी!!!
साथ खायेंगे साथ पीएं
पर लड़ते रहना।
अलग -अलग झंडे के नीचे
भिड़ते रहना ।।
जनता समझेअलग -अलग
पर मिलके रहना।।
अखबारों में रोज़ कीचड़ें,
फिंकते रहना।।
सत्ता हथियाने की हमको
केवल तुरसी।
आओ बच्चो ! ............
बॉल हमारे कभी तुम्हारे
पाले में हो।
हाथी के ये दाँत
मात्र दिखलाने में हों।।
खाने वाले दाँत
किसी को क्यों दिखलायें?
बारी- बारी मेवा किशमिश
हम - तुम खाएं।।
सुखदायक है सदा,
नहीं ये असुरा - सुरसी।।
आओ बच्चो!.........
कु -रस उसी के लिए
नहीं मिल पाती जिसको।
सरस उसी के लिए
कभी मिल जाती जिसको।
लड़ना तो दिखलाने के हित
नाटक - सा है।
कुर्सी के हित लक्ष्य साधना
त्राटक - सा है।
रसगुल्ला-सी मधुर मनोहर
मिश्री गुर-सी ।।
आओ बच्चो ..............
आओ चिड़ियों के पिंजरे में
दाना डालें।
जिसके फंदे में आ जाए
तुरत फँसा ले।।
चित भी अपनी पट भीअपनी
ख़ूब मज़ा लें।।
बैनर बन्दनवार गली में
चटख सज़ा लें।।
खेलो कूदो हँसो ,
नहीं ये मातमतपुर्सी।
आओ बच्चो ..............।।
💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🌷 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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