मतदान - पर्व की वेला है।
ये लोकतंत्र का मेला है।।
अपने मत का हम दान करें।
नव -भारत का संधान करें।।
हम मोल मतों का पहचानें।
अपना महत्त्व भी हम जानें।।
यहाँ कोई नहीं अकेला है।
मतदान - पर्व की वेला है।।
अधिकार हमारा हमें मिला ।
निर्माण करें जनतंत्र -किला।।
दृढ़ एक डोर में बँधे हुए।
कर्तव्य हमारे सधे हुए।।
शोषण भी हमने झेला है।
मतदान- पर्व की वेला है।।
संगठन हमारी शक्ति है।
हमें मातृभूमि की भक्ति है।।
एकता - मंत्र ही गाना है।
नर - नारी को समझाना है।।
नहिं भीड़ भरा ये रेला है।
मतदान -पर्व की वेला है।।
आगे ले जाए जो भारत को।
त्यागे अपने हर स्वारथ को।।
उसको सत्पात्र बनाना है।
हमने निज मन में ठाना है।।
महका ग़ुलाब और बेला है।
मतदान -पर्व की वेला है।।
कीचड़ -उछाल नेताओं से।
बचना है इन लेताओं से।।
जो खाल ओढ़कर आते हैं।
शिक्षक बन हमें सिखाते हैं।।
पीछे ये देश धकेला है।
मतदान -पर्व की वेला है।।
करनी पर कथनी भारी है।
हर नेता की बीमारी है।।
लम्बे अरसे से जाना है।
धन-पद लोलुप पहचाना है।।
संसद नहिं गुड़ का भेला है।
मतदान - पर्व की वेला है।।
गदहों में घोड़ा कौन यहाँ।!
इस मुद्दे पर सब मौन यहाँ।।
इस बार न अवसर खोना है।
नहिं पाँच साल को रोना है।।
सब गुरू यहाँ नहिं चेला है।
मतदान -पर्व की वेला है।।
ये दूध धुले सब बनते हैं।
सत्ता पाकर वे तनते हैं।।
तुम सावधान उनसे रहना।
दीवारों से भी मत कहना।।
ये छलिया चंचल छैला हैं।
मतदान -पर्व की वेला है।।
ये सांपनाथ वे नागनाथ।
रगड़ेंगे नाक नत आज माथ।।
दोमुँहे गरम और ठंडे भी।
खाते हैं काजू अंडे भी।।
नेता का बुरा झमेला है।
मतदान -पर्व की वेला है।।
अपनापन इनका नाटक है।
दिखता बस इनको हाटक है।
मीठी बातों में मत आना।
मत सोच समझकर दे आना।
जानो मत लड्डू केला है।
मतदान -पर्व की वेला है।।
💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
बहुत सुंदर मार्गदर्शी रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
जवाब देंहटाएं