बुधवार, 17 अप्रैल 2019

प्रहेलिका [अतुकान्तिका]

किस   लय    से 
किसलय   बना -
विकसित पल्लव,
शैशव से कैशोर्य-
यौवन का जीवन नव,
विकास -यात्रा का
अन्तः अनुभव।

न   कहीं     कोई    भ्रम,
निरन्तर विकास का क्रम,
तथापि भ्रम में जीना,
भ्रम   में  ही   रखना,
षोडशी के चरणों में
मिथ्या -पाहन  रखना,
माह की तिथि तक रहना
अन्तः अग्नि से अंदर दहना,
सदा मिथ्या लिखना ,
कहना।

सम्भवतः ये कोई
 फैशन है,
यथार्थ को झुठलाने का
थोथा प्रदर्शन है,
परंतु फैशन भी
रूप बदलता है,
किन्तु ये फैशन
उनके आचरण में
ढलता है।

प्रकृति कहती है-
'निरन्तर प्रतिक्षण परिवर्तन,
स्त्री -पुरुष जड़ या चेतन:
परिवर्तन !
परिवर्तन!!
परिवर्तन!!!
अनिवारणीय परिवर्तन!
अपरिहार्य परिवर्तन!!
तिथि माह या वर्ष ,
सभी का अपना उत्कर्ष !'

बोल लो तुम 
चाहे जितना असत्य,
तुम्हारी आँखे चेहरा,
हाल कह देता है
सच का,
न कहीं विश्राम,
न विराम कहीं,
अनवरत एक गति,
जीवन की भी यही नियति,
सरिता के सागर में
मिल    जाने   तक,
फिर क्यों तुम्हारी
मात्र जन्म की तिथि है?
वर्ष है ही नहीं ,
एक असम्भव तथ्य
प्रवंचना प्रकृति के संग,
नहीं हो तुम आदि ब्रह्म भी,
उद्गम अवसान के -
जिसके  तिथि माह वर्ष नहीं,

सम्भवतः तुम एक 
सजीव प्रहेलिका हो,
सत्योदघाटन की जिससे
कोई अपेक्षा भी नहीं।

💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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