शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019

भेड़ [अतुकान्तिका]

भेड़
उसके पीछे 
एक और भेड़,
और उसके भी पीछे,
फिर भेड़,
भेड़ों के पीछे 
बस भेड़ ही भेड़,
बन गया रेवड़,
रेवड़ में ही पूर्ण
विश्वास लिए
भेड़ ही भेड़।

न अपना भान,
न कोई ज्ञान,
संधान न अनुसंधान,
चिंतन न मनन,
न अनुचिंतन मंथन,
केवल और केवल
अंधानुकरण,
अन्धानुसरण,
अंधा - वरण,
पड़ते सब चरण।

जगत -गति से विमुख,
सुखी सब मेष,
न किंचित क्लेश,
न म्लानता लेश,
अनुगामी अंधी मेष।

अंध कूप में गमन,
ऊर्ण का तन -मुंडन,
नित -प्रति आचरण
अन्धताप्रिय तन मन
चर्म युगल नयन,
मौन जिह्वा बंधन।

सदा नतग्रीव,
दृष्टि की सुखद सींव,
तितिक्षा ही इच्छा,
मन की वरीक्षा 
न दूर दृष्टि
रेवड़ सीमित सृष्टि।

भेड़ ही भेड़,
आवाज आई 
हु र्र र्र र्र $$$
चल पड़ीं सब
सुर्र र्र र्र र्र ....

💐शुभमस्तु !
✍ रचयिता ©
☘*डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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