गरमी आई ! गरमी आई !
विदा हो गई शीतलताई।।
तपते सूरज दादा भारी।
लम्बी तीखी किरण पसारी
तपता अम्बर तपती धरती।
प्यासी व्याकुल चिड़ियां मरती।
पानी का अभाव दुःखदाई।।
गरमी आई ....
आम रसीले जी भर खाओ।
तरबूजा खरबूजा पाओ।।
प्यास बुझाता खीरा प्यारा।
जामुन फ़ालसेव भी न्यारा।।
कुल्फ़ी आइसक्रीम मनभाई।
गरमी आई ......
स्वेटर कोट नहीं अब भाते।
सूती कपड़े बहुत सुहाते।
लू लपटों से बचके रहना।
तेज धूप की क्या कुछ कहना!
फेंको कम्बल गर्म रजाई।
गरमी आई ...
कोल्ड ड्रिंक बिलकुल मत पीना।
रोग रहित यदि चाहो जीना।
पीना पना आम का रोचक।
लू -लपटों का संकट मोचक।
मधुर सन्तरा आनन्द दायी।
गरमी आई ....
लस्सी मट्ठे का क्या कहना!
धूप -ताप गरमी की सहना।।
सरसों तेल लगाओ तन पर।
नहीं डंसेगा कोई मच्छर।
बिखरे पात चली पछुआई।
गरमी आई ...
नहीं घूमना नंगे पैर ।
जो चाहो पाँवों की खैर।।
ढँकना कान कनपटी अपने।
खुली धूप जो लगते तपने।।
'शुभम'बात इतनी समझाई।
गरमी आई .....
💐शुभमस्तु!
✍ रचयिता ©
🌳 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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