नेता खोजन मैं चला,
नेता मिला न कोय।
टी वी औ' अख़बार में ,
लेता लेता होय।।
जब कोई नेता नहीं,
डालें किसको वोट।
जनता का धन लूटकर,
बाँट रहे हैं नोट।।
लालच डूबी नासिका,
आँखें संसद ओर।
वसन बगबगे देह पर,
मन में बैठा चोर।।
रोज़गार देते नहीं ,
नहीं नौकरी पास।
जातिवाद में घुस गए,
इनसे कैसी आस ??
जातिवाद के ज़हर का,
करते ख़ूब प्रसार ।
आपस में जनता भिड़े,
राजनीति का सार।।
भय फैलाते धर्म का,
फैलाए बहु वाद।
लक्ष्य एक सत्ता मिले
भले देश बरबाद।।
अपनी करनी दूध सी,
उसकी काली कीच।
मुख से बदबू फैलती ,
जनगण मन के बीच।।
जब प्रचार-भाषण किया,
कीचड़ की बौछार।
अपने मुँह मिट्ठू मियां,
यही एक औजार।
वंशवाद की बेल पर,
फूले फूल अनेक।
ज्योति शेष हो नयन में,
खोल युगल तू देख।।
हीनचरित अपराध बहु,
हिंसा शत दुष्कर्म।
लम्बी सूची बन गई ,
काला पंकिल मर्म।।
धन ही केवल पात्रता,
अरबी खरबी पात्र।
धनाभावमय दूर हट,
ईमानदार कुपात्र।।
भले अँगूठा छाप हो,
भले जेल में बंद।
आतंकी को टिकट है,
घूमे सदा स्वछन्द ।।
साठ साल के बाद ही ,
खुले बुद्धि - का द्वार।
कफ़न तिरंगे का बना,
छोड़ें देह असार।।
जन जीवन से मुक्त हो
जाते स्वर्ग सिधार।
राजनीति से देश का ,
हल्का होता भार।।
'फल-इच्छा करना नहीं,
नेता का संदेश।।
कर्म करो उनके लिए,
विकसित होगा देश।।
पूरब से पश्चिम गया,
हिमगिरि सिंधु अपार।
लेता ही लेता सहस,
रोगी एक अनार।।
💐*शुभमस्तु !
✍ रचयिता©
🌳 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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