घोड़े सब घुड़साल में,
गदहे सड़क बज़ार।
ढेंचू - ढेंचू कर रहे,
डाल गले में हार।।
घोड़े से गदहा कहे,
मैं गोरा तू लाल।
मेरा कद बढ़ता नहीं,
तूने किया कमाल।।
गदहा बैठा मंच पर,
ओढ़ शेर की खाल।
देवतुल्य प्यारे गधो!,
तुम सब मेरी ढाल।।
दिन के बारह बज गए,
गधा लगाई टेर।
गधे रेंकने सब लगे,
तनिक नहीं की देर।।
दार्शनिक मुद्रा बना ,
गधा घूर के ढेर।
चिंतन में खोया मगन,
ज्यों जंगल में शेर।।
गधा दुलत्ती में मगन,
घूरा करे विचार।
मेरा क्या अपराध है,
करता लात प्रहार।।
सभी गधों ने गुट बना ,
चुना गधा इक नेक।
श्वेत वसन गलमाल भी,
केवल शून्य -विवेक।।
बकरा-बलि के नाम पर,
चुना गधा बलवान।
कटना तो है ही उसे,
बचे अश्व की जान।।
तुम ही सबसे योग्य हो,
सम्यक श्रेष्ठ सुपात्र।
सोचसमझ निर्णय हुआ,
उज्ज्वल चरित सुगात्र।।
गधे उच्च कद के सभी,
ढेंचू - ढेंचू बोल।।
घोड़े सब घुड़साल के,
बजा रहे हैं ढोल।।
💐 शुभमस्तु!
✍ रचयिता ©
✴ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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