पाती जब साजन की आती।
मन में नया नूर भर जाती।।
तन के रोएँ खिल-खिल जाते,
आँखों में न खुशी समाती।
पग धरती से उड़ते ऊपर,
रग-रग में बिजली भर जाती।
खुलने से पहले पाती के,
लिखा हुआ सब कुछ पढ़ जाती।
जो मन मेरे सो मन तेरे ,
मन के भाव ताड़ मैं जाती।
पाती से पा परस तुम्हारा,
लाज -शर्म से मर -मर जाती।
पाती के वे दिन सब बीते,
सखियों के संग 'शुभम' सिहाती।।
💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🌹 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें