वे   जब   आने   वाले   होते।
तन -मन रिसते रस के सोते।।
टेक  हथेली   पर   मैं   ठोड़ी,
लेती   यादों   के  तल  गोते।।
 छिप-छिप पढ़ती पाती उनकी,
कोई न   देखे   हँसते   रोते।।
लजियाती बलखाती बाला,
चौंक   जागती  सोते -सोते।।
थोड़ी  ऊँची   करके   बाती,
पतियाँ  पढ़ती    रोते -रोते।।
कही  न  जाए   मौन  वेदना ,
बच जाती   बावरिया  होते।।
किस्मत  ऐसी  साथ नहीं वे,
'शुभम' बीज दोनों संग बोते।।
💐 शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
💖 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
 
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