वोट लूटने के लिए,
जनता को सौगात।
चार दिवस की चाँदनी,
फिर अँधियारी रात।।
आछे दिन पाछे गए,
वादे ढोलम - पोल।
मत देने से प्रथम जन,
लेना सबको तोल।।
बहुमत में सत्ता बसी,
बहुमत में सुख -चैन।
बहुमत में यदि मूर्खजन,
कोई शब्द कहे न ।।
जब लेती है हाथ में,
प्रकृति न्याय निज नाम।
अन्यायी के न्याय का ,
होता वहीं विराम।।
परिवर्तन की चल रही,
पवन वसंती मंद।
हरियाए हैं ठूँठ भी,
लिपटी लता सुछन्द ।।
कीर लुभाने के लिए ,
दाने फेंके चार ।
एक ओर खाई खुदी,
उधर आग का भार ।।
चमचों की चाँदी हुई,
चमंच खुशबूदार।
नाकों रबड़ी में गड़ी,
पायल की झनकार।।
एक ओर जयकार है,
उधर गले में हार।।
नर - नारों के बीच में,
ध्यान खींचती नार।।
कली -कली पर झूमते,
लोभी भ्रमर अनेक।
फूलों का रस चूसते,
लगा करों की टेक।।
'शुभम' हार हर हाल में,
रहें आर या पार।
सवा लाख गज मरा,
जीवित सौ के द्वार।।
💐 शुभमस्तु !
✍ रचयिता
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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