मंगलवार, 23 अप्रैल 2019

फफूँदी अचार [दोहा ]

काने     कुबड़े   बेर  हैं,
चुनना   है   बस   एक।
असमंजस भारी  जगा,
खोजें    कैसे     नेक  ।।

सर्वश्रेष्ठ   निज को बता ,
करते       रहे      प्रचार।
किन्तु  हमें  ऐसा  दिखा,
लगा   फफूँद    अचार।।

झोली  में   कीचड़  भरा,
फेंका      जीभर    रोज़।
ऐसे  याचक     में  कहाँ,
करें  साधु    की  खोज।।

नेता  !नेता!!  जो   जपे,
ताने        ताने       होय।
आम कहाँ   से  खायगा,
जो    बबूल    तू    बोय।।

मत लेकर फिर जायगी,
मति   नेता   की   मित्र।
टीवी   अखबारों  दिखे,
नेताजी     के      चित्र।।

जनता    से   ही  देश है,
नहीं   देश  इक   व्यक्ति।
दें उसको कुछ भी सजा,
जनता  की ही    शक्ति।।

भेड़ें  चलतीं   भीड़    में,
बांध     मूँछ     से   पूँछ।
अपनी      मूँछ  सजाइए,
रहे       मूँछ    की मूँछ।।

सबकी   'मैं' 'मैं देख ली,
आगे   टें   भी       देख।
पीछे  उनके    जो   चले,
समझ   उन्हें   तू   मेख।।

लड़ते    हैं     मैदान    में,
ताल   ठोंक   दस   पाँच।
सेहरा  जिसके शीश पर,
नाच  उसी   का   साँच।।

जनहितकारी    के  गले,
मिले    फ़ूल    का  हार।
लोकतंत्र    फूले     फले,
'शुभम'सुसज्जित  द्वार।।

💐 शुभमस्तु ! 💐
✍रचयिता ©
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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