बुधवार, 3 अप्रैल 2019

रसना रसना ही रहे [छन्द:कुंडलिया ]

रसना   का रस से  जुड़ा,
नाता    रस      की  धार।
घात   कभी मत कीजिए,
बना      हिंस्र   हथियार।।
बना       हिंस्र    हथियार,
हृदय  में    घाव   बनाती।
मरहम     इसका     नहीं,
न   रूठा   यार  मनाती।। 
लाचारी में कभी किसी पर,
'शुभम'      न       हँसना।
करती       गहरी      मार,
गाल  के   अंदर रसना ।।


 रसना   बहुरंगी   विकट,
सुधा    ज़हर   की  खान।
स्नेह प्रणय वात्सल्य की ,
रसना   में   है     जान ।।
रसना     में    है    जान,
शत्रु   को   मित्र  बनाती।
चलकर   उलटी    चाल,
मित्र  बन जाता  घाती।।
रार   प्यार    का   स्रोत ,
'शुभम' वाणी में रस ना।
बनती     तेज      कटार,
नहीं  फ़िर रहती रसना।।


रसना   में    ही  स्वर्ग है,
रसना    में    ही    नर्क।
स्वर्ग    नर्क    संवाहिनी,
करती      बेड़ा      ग़र्क।
करती    बेड़ा       ग़र्क,
सास   से बहू  भिड़ाती।
निकल    वदन  के  द्वार ,
किसी को चपल चिढ़ाती
नेताजी  बच    के   रहो,
'शुभम' यों व्यंग्य न कसना,
हँसना     जाओ    भूल,
सँभालो अपनी रसना।।


रसना    रहती   गाल में,
वहाँ    न   हड्डी     बाल।
लचक-मचक निकली ज़रा,
खींचे    उनकी    खाल।
खींचे   उनकी    खाल,
तुरत  अंदर घुस जाती।
क्षण   में   करे  कमाल,
तुष्ट  नाखुश कर जाती।।
ढाई    इंच    की     देह ,
'शुभम'अमृत विष रिसना
चमत्कार         साक्षात ,
मनुज-मुख बसती रसना।


रसना    रसगुल्लामयी ,
रसना   नीम  -  कुनैन।
बरसाए    तेज़ाब  जब ,
जी   में    रहे   न  चैन ।।
जी  में    रहे     न  चैन ,
सुलगता बिना आग के।
लगता     दंश    कराल,
बिना  कोबरा   नाग  के।।
मधु  -  से   मीठे   बोल ,
'शुभम'ये बाग न कसना।
रसना      रसना       रहे ,
कहें रस-निर्झर  रसना।।

💐 शुभमस्तु!
✍ रचयिता©
🗣 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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