वर्ष अठारह करके पार।
लेंगे हम मत का अधिकार।।
देश हमें मज़बूत बनाना।
नहीं वेश की रोटी खाना।
करके वादे सभी निभाना।
नहीं सुनेंगे कोई ताना।।
संग विकास के जन उद्धार।
वर्ष अठारह ...
ऊपर से नीचे जाता है।
भृष्टआचरण कहलाता है।
रिश्वतऔर कमीशनखोरी।
नहीं करेंगे धन की चोरी।।
दुश्मन से नहिं मानें हार।
वर्ष अठारह ....
कथनी में विश्वास नहीं है।
करनी अपनी काश सही है
नहीं भिखारी मत का बनना
नहीं तीर शब्दों के चुभना।।
खोलेंगे विकास के द्वार।
वर्ष अठारह ....
क्यों कर बेशर्मी से जीना!
जूतों में शरबत क्या पीना!!
मालाओं से मोह नहीं है।
जनता जी से कोह नहीं है।।
प्रतिपक्षी से कोई न रार।
वर्ष अठारह....
कोरे भाषण से क्या होता !
जब गरीब का बालक रोता!
रोता नकलीआँसू नेता।
वोट भीख में जिससे लेता।।
ऐसे नेता केवल भार।
वर्ष अठारह......
💐 शुभमस्तु !
✍ रचयिता ©
👨🏫 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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