धरती - माता के सभी,
हम बालक नादान।
उऋण न होंगे जन्म भर,
करें सदा सम्मान।।
जब जननी के गर्भ से,
बाहर आया जीव।
धरती - माँ ने गोद भर,
थामे नव तन ग्रीव।।
धरती - माँ की गोद से,
जननी - आँचल बीच।
नर - नारी नवजात को,
स्नेह - सुधा से सींच।।
डगमग चलना सीखकर,
बड़ा हुआ नवजात।
धरती माँ ने धूल की ,
तन को दी सौगात।।
दौड़ा भागा रौंदता,
तू धरती को नित्य।
धारण कर सहती सदा,
रे नर! तेरे कृत्य।।
गड्ढे खोदे कूप भी,
सरिता सिंधु महान।
मौन धार सहती सदा,
करती जीवन - दान।।
अन्न दूध फ़ल फ़ूल का ,
स्रोत धरा के गर्भ ।
कोयला हीरा रत्न का ,
समझो तो संदर्भ।।
पर्वत झरने झील की,
सुषमा सुखद अपार।
धरती की महती -कृपा,
बरस रही संसार।।
पौधारोपण से जगें,
मुरझाए तन प्राण।
पृथ्वी का जीवन बढ़े,
जीव - जंतु का त्राण।।
जल दोहन सीमित करें,
व्यर्थ बहा मत नीर।
पृथ्वी है तो आप हैं ,
वरना शेष न कीर।।
लगने में वर्षों लगें,
मिनटों में दें काट।
सींचो सोचो वृक्ष - हित,
हे पृथ्वी - सम्राट !!
पौधा रोपा मगन हो,
सेल्फ़ी ली मुस्काय।
मुड़कर फिर देखा नहीं,
खाए बकरी गाय।।
ख़बर छपी फ़ोटू छपा,
लगा रहे हैं पेड़ ।
सींचा फ़िर मुड़कर नहीं,
हुई पेड़ की रेड़।।
सबमर्सिबल चल रहा,
बहता सड़क बज़ार।
भैंसों का स्नान -घर,
पर्यावरण सुधार??
नगर पालिका के खुले,
टोंटी नल फव्वार।
देख नागरिक बढ़ गया ,
बंद सोच का द्वार।।
पृथ्वी - रक्षा कर सके,
क्या आशा - विश्वास ?
'शुभम 'आदमी देश का,
देता भाषण ख़ास।।
सच्चा पृथ्वी दिवस तब,
जागे भू - संतान।
मानव पृथ्वी - पुत्र तू,
'शुभम' न बन शैतान।।
नारे लिखने मात्र से,
होता 'शुभम' न कार्य।
वचन-बतासे व्यर्थ सब,
करनी ही अनिवार्य।
🌳 पृथ्वी-दिवस 🌳
🌲 की हार्दिक🌲
☘शुभकामनाएं☘
💐 शुभमस्तु!
✍ रचयिता©
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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