मंगलवार, 23 अप्रैल 2019

धरती -दोहावली

धरती  - माता  के सभी,
हम    बालक     नादान।
उऋण न होंगे जन्म भर,
करें    सदा     सम्मान।।

जब   जननी   के गर्भ से,
बाहर      आया     जीव।
धरती - माँ ने  गोद  भर,
थामे    नव   तन   ग्रीव।।

धरती - माँ   की गोद से,
जननी - आँचल    बीच।
नर -  नारी नवजात को,
स्नेह -  सुधा   से  सींच।।

डगमग चलना सीखकर,
बड़ा    हुआ     नवजात।
धरती   माँ  ने   धूल की ,
तन  को   दी    सौगात।।

दौड़ा     भागा    रौंदता,
तू    धरती    को  नित्य।
धारण कर सहती सदा,
रे   नर!     तेरे    कृत्य।।

गड्ढे    खोदे    कूप   भी,
सरिता    सिंधु    महान।
मौन धार  सहती   सदा,
करती   जीवन - दान।।

अन्न दूध फ़ल फ़ूल का ,
स्रोत   धरा   के   गर्भ ।
कोयला  हीरा रत्न का ,
समझो    तो     संदर्भ।।

पर्वत   झरने  झील की,
सुषमा  सुखद  अपार।
धरती की महती -कृपा,
बरस      रही    संसार।।

पौधारोपण     से   जगें,
मुरझाए     तन     प्राण।
पृथ्वी   का  जीवन  बढ़े,
जीव -  जंतु  का त्राण।।

जल दोहन सीमित करें,
व्यर्थ   बहा    मत  नीर।
पृथ्वी   है  तो   आप हैं ,
वरना   शेष   न   कीर।।

लगने    में    वर्षों   लगें,
मिनटों    में   दें     काट।
सींचो सोचो वृक्ष - हित,
हे       पृथ्वी -   सम्राट !!

पौधा    रोपा   मगन हो,
सेल्फ़ी    ली   मुस्काय।
मुड़कर  फिर देखा नहीं, 
खाए    बकरी     गाय।।

ख़बर   छपी  फ़ोटू छपा,
लगा     रहे     हैं    पेड़ ।
सींचा फ़िर मुड़कर नहीं,
हुई    पेड़     की    रेड़।।

सबमर्सिबल   चल रहा,
बहता   सड़क   बज़ार।
भैंसों   का   स्नान -घर,
पर्यावरण       सुधार??

नगर पालिका के खुले,
टोंटी    नल     फव्वार।
देख नागरिक बढ़ गया ,
बंद   सोच   का  द्वार।।

पृथ्वी  - रक्षा  कर  सके,
क्या   आशा - विश्वास ?
'शुभम 'आदमी देश का,
देता   भाषण    ख़ास।।

सच्चा पृथ्वी दिवस तब,
जागे       भू  -   संतान।
मानव   पृथ्वी - पुत्र  तू,
'शुभम'  न  बन शैतान।।

नारे   लिखने   मात्र  से,
होता  'शुभम'   न कार्य।
वचन-बतासे व्यर्थ सब,
  करनी    ही   अनिवार्य।   

      🌳 पृथ्वी-दिवस 🌳     
                🌲 की हार्दिक🌲                
☘शुभकामनाएं☘

💐 शुभमस्तु!
✍ रचयिता©
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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