इस देश की यह प्राचीन परंपरा रही है कि जिस मार्ग पर महापुरुष जाएँ , वह मार्ग आम जन के लिए अनुगमन के योग्य माना जाता है। माना ही नहीं जाता ,लोग लकीर के फ़कीर तो होते ही हैं और जब जिस मार्ग पर बड़े लोग चलने लगें , वह आमजन के लिए बिना सोचे -विचारे ,बिना देखे -भाले, बिना पूछेताछे चलने के योग्य होता है।लोग बराबर चल रहे हैं , चलते चले आ रहे हैं और चलते रहेंगे भी। किसी को कुछ भी सोचने -समझने की आवश्यकता इसलिए नहीं है , क्योंकि जब महापुरुषों ने ही सब कुछ सोच -विचार लिया , सब कुछ देखभाल लिया -तभी तो उन्होंने अपने कदम मार्ग पर डालकर उसे धन्य -धन्य कर दिया। फिर भला हमें क्या पड़ी कि अपने मष्तिष्क पर अनावश्यक बल प्रयोग करके उसे कष्ट में डालें, क्योंकि थोड़ा - बहुत अपना मष्तिष्क अपने लिए भी सोच -विचार कर रख ही लेना चाहिए। पता नहीं कब उसके 'सद प्रयोग' की आवश्यकता आ जाए और हमारे पास वह हो ही न ! क्योंकि हम तो उसे वहाँ खर्च कर चुके रास्ता ढूँढने में। क्या ज़रूरत थी कि हमने अपना मार्ग चुनने में अपने मष्तिष्क का व्यर्थ अपव्यय किया ?
अब आप ही देखिए कि यदि कोई 'महाजन' अर्थात 'महापुरुष अर्थात तथाकथित 'बड़ा आदमी' (बड़ा आदमी का अर्थ ये कदापि न लगाया जाए कि वह 'बड़ी स्त्री ' नहीं हो सकती , अवश्य हो सकती है। इसलिए नारियां कृपया निराश न हों , वे भी कम बड़ी नहीं है। वैसे भी 'नर से भारी नारी' ।) यदि कोई बड़ा आदमी ( स्त्री भी) कहे कि 'मैं गधा हूँ' तो इस देश में अपने नाम के आगे पीछे गधा लिखने वालों की लाइन ही लग जाएगी। अब इतने गधों के बीच में असली गधा तो परदे के पीछे छिप जाएगा और बाकी के सभी गधे छप जाएंगे। कोई व्हाट्सएप्प पर कोई अखबार में औऱ कोई टी वी पर। फिर देश में गधे ही गधे होंगे औऱ सारा देश उस गधत्व को हासिल कर लेगा कि असली घोड़ा भी गधों की लाइन में लाइन मार रहा होगा। इसी बात को यदि यूँ कहा जाए कि यदि कोई 'तथाकथित बड़ा आदमी' यदि यह सार्वजनिक घोषणा कर दे कि 'मैं उल्लू हूँ' , तो फिर तो हालात ये हो ही जाने हैं कि : हर शाख पे उल्लू बैठा है, अंजामे गुलसिताँ क्या होगा?
फिर तो क्या नेता क्या अधिकारी ! क्या नौकर क्या कर्मचारी !, क्या बापू क्या महतारी!, क्या दरवेश क्या दरबारी!, क्या मंत्री क्या मंत्राणी , क्या गुरू क्या चेलाजी ! सभी के आगे लिखा होगा :- उल्लू 'क ' जी उल्लू 'ख' जी उल्लू 'ग' जी वगैरह वगैरह। फिर किसी शायर की पंक्तियां सोलहों आने सही साबितहो ही जाएँगीं कि हर शाख पे .....
देश की परम्परा महान है। उस अमर परम्परा का उचित निर्वाह करने वाले 'अति बुद्धिमान ' देशवासी तो अति महान हैं। क्योंकि वे कभी नहीं चाहेंगे कि हमारे देश के किसी महापुरुष / महामहिला का कभी अपमान हो।उनकी करनी का अंधानुकरण करना ही हमारा पवित्र धर्म है।पावन कर्तव्य है। यदि हम ऐसा नहीं करते तो एक महापुरुष /महा नारी का महा अपमान होने का महान खतरा है, जो हम ऐसा ख़तरा मुफ़्त ही मोल नहीं लेना चाहते।
अतः हमें उस चली आ रही परम्परा का निर्वाह करते हुए अपने नाम के साथ ऐसी मानद उपाधियां जरूर ग्रहण कर लेनी चाहिए ,जिनको प्राप्त करने के लिए हमें किसी विश्वविद्यालय में प्रवेश भी प्राप्त नहीं करना है। और बिना करे -धरे की डिग्रियां लेने का तो हमारा पुराना शौक रहा है।यदि परिश्रम करके ही डिग्री मिली तो क्या मिली! चोरी का गुड़ ज्यादा मीठा होवे है।
सर्व मूर्खाणां नमो नमः।।
💐शुभमस्तु !
✍ लेखक ©
🕵 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
अब आप ही देखिए कि यदि कोई 'महाजन' अर्थात 'महापुरुष अर्थात तथाकथित 'बड़ा आदमी' (बड़ा आदमी का अर्थ ये कदापि न लगाया जाए कि वह 'बड़ी स्त्री ' नहीं हो सकती , अवश्य हो सकती है। इसलिए नारियां कृपया निराश न हों , वे भी कम बड़ी नहीं है। वैसे भी 'नर से भारी नारी' ।) यदि कोई बड़ा आदमी ( स्त्री भी) कहे कि 'मैं गधा हूँ' तो इस देश में अपने नाम के आगे पीछे गधा लिखने वालों की लाइन ही लग जाएगी। अब इतने गधों के बीच में असली गधा तो परदे के पीछे छिप जाएगा और बाकी के सभी गधे छप जाएंगे। कोई व्हाट्सएप्प पर कोई अखबार में औऱ कोई टी वी पर। फिर देश में गधे ही गधे होंगे औऱ सारा देश उस गधत्व को हासिल कर लेगा कि असली घोड़ा भी गधों की लाइन में लाइन मार रहा होगा। इसी बात को यदि यूँ कहा जाए कि यदि कोई 'तथाकथित बड़ा आदमी' यदि यह सार्वजनिक घोषणा कर दे कि 'मैं उल्लू हूँ' , तो फिर तो हालात ये हो ही जाने हैं कि : हर शाख पे उल्लू बैठा है, अंजामे गुलसिताँ क्या होगा?
फिर तो क्या नेता क्या अधिकारी ! क्या नौकर क्या कर्मचारी !, क्या बापू क्या महतारी!, क्या दरवेश क्या दरबारी!, क्या मंत्री क्या मंत्राणी , क्या गुरू क्या चेलाजी ! सभी के आगे लिखा होगा :- उल्लू 'क ' जी उल्लू 'ख' जी उल्लू 'ग' जी वगैरह वगैरह। फिर किसी शायर की पंक्तियां सोलहों आने सही साबितहो ही जाएँगीं कि हर शाख पे .....
देश की परम्परा महान है। उस अमर परम्परा का उचित निर्वाह करने वाले 'अति बुद्धिमान ' देशवासी तो अति महान हैं। क्योंकि वे कभी नहीं चाहेंगे कि हमारे देश के किसी महापुरुष / महामहिला का कभी अपमान हो।उनकी करनी का अंधानुकरण करना ही हमारा पवित्र धर्म है।पावन कर्तव्य है। यदि हम ऐसा नहीं करते तो एक महापुरुष /महा नारी का महा अपमान होने का महान खतरा है, जो हम ऐसा ख़तरा मुफ़्त ही मोल नहीं लेना चाहते।
अतः हमें उस चली आ रही परम्परा का निर्वाह करते हुए अपने नाम के साथ ऐसी मानद उपाधियां जरूर ग्रहण कर लेनी चाहिए ,जिनको प्राप्त करने के लिए हमें किसी विश्वविद्यालय में प्रवेश भी प्राप्त नहीं करना है। और बिना करे -धरे की डिग्रियां लेने का तो हमारा पुराना शौक रहा है।यदि परिश्रम करके ही डिग्री मिली तो क्या मिली! चोरी का गुड़ ज्यादा मीठा होवे है।
सर्व मूर्खाणां नमो नमः।।
💐शुभमस्तु !
✍ लेखक ©
🕵 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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