'ज्यों - ज्यों दवा की मर्ज़ बढ़ता गया।' ये कहावत यों ही नहीं बनी। आज सारे देश में जहाँ - जहाँ गड्ढे हैं ,
उनके विषय में कौन नहीं
जानता? गड्ढे किसने किए , ये
भी किसी से छिपा हुआ नहीं
है।ये गड्ढे भरे कैसे जाएंगे , यह भी सब जानते ही हैं। पर
यदि ये सारे गड्ढे भर दिए गए
तो फिर भविष्य गड्ढा मुक्त हो
जाएगा और देश समस्या रहित हो जाएगा। काश ! यदि ऐसा हो गया तो इतने
नेताओं , विधायकों, सांसदों ,
मंत्रियों,विभागों, अधिकारियों
कर्मचारियों , कचहरियों, अदालतों का क्या होगा ?
इसलिए गड्ढे बने रहने में ही
कुशल -खैर है, अन्यथा गड्ढा -पूरकों और गड्ढों का पुराना बैर है। इसीलिए यहाँ देर भी है , और बाकायदे अंधेर भी है। यदि अँधेरा होगा , तभी
तो उजाले की ज़रूरत महसूस होगी। अँधेरे का महत्त्व उन मोहल्ले वालों को
पता होता है, जहाँ की बिजली चार -छः दिन से नहीं
आ रही होती। लेकिन जब एक झटके में आती है , तो
मोहल्ले में हल्ला मच जाता है
: 'आ गई ! आ गई!!' फिर किसी को यह पूछने -बताने की आवश्यकता नहीं होती
कि क्या आ गई! क्योंकि
सब जानते हैं कि उन्हें किस
का इंतज़ार था, और क्या
आ गई ? इसीलिए मोहल्ले
का नाम मोहल्ला पड़ गया , कि हर मूँ से यही हल्ला
( मूँ + हल्ला) बोला
गया कि आ गई ई ई ......
समस्याओं का समाधान देश की प्रगति के लिए कोई हल नहीं है। समस्याओं के बने रहने से कुर्सी बनी रहती है। लोकतंत्र में वैसे ही कुर्सी आसानी से नहीं मिलती , उस पर भी देश , समाज , नगर , गांव को समस्या मुक्त कर दो , तो फिर क्या घुइयाँ छीलोगे ? या झख मारोगे? यदि ऐसा हो भी जाए तो न तो बाज़ार में इतनी घुइयाँ ही हैं , जो सारे नेताओं , अधिकारियों और कर्मचारियों के हिस्से में छीलने को मिल जाएं? औऱ न ही नदियों में इतनी झख (मछलियाँ ) ही हैं , जो काँटा लेकर उन्हें जाल में फंसाते फ़िरो ? इसलिए जैसा है , वैसा ही रहने देने में खैर-खुशी है। ऊपर वाले /वाली भी खुश और नीचे वाले भी खुश कि जाँच चल रही है। जांचोपरांत भले मिलें ढाक के तीन पत्ते ही। जो सब पहले से जानते ही हैं। पर जाँच तो होना जरूरी है तो होगी ही। औऱ जब जाँच होगी तो रिजल्ट भी देगी। जो सबको पहले से ही पता है कि रिजल्ट क्या आने वाला है।
इसलिए मैंने पहले ही कहा न कि यहाँ हर आम औऱ ख़ास को पहले से ही मालूम रहता है कि क्या है , क्या होगा, क्या होने वाला है ! इसलिए यथा स्थिति बनाए रखना , सबसे सुखद व्यवस्था है।जैसे पुलिस को पहले से से मालूम रहता है कि कौन बाइक चोर है ? कौन ककड़ी चोर है? कौन मोबाइल चोर है , कौन गिरहकट और कौन राहजनी का उस्ताद है? इसी प्रकार यदि एक ही पंचवर्षीय योजना में देश की सभी तरह की समस्याओं से यदि निज़ात दिला दी गई तो आगे नेताओं के लिए कोई काम नहीं रह जायेगा! फिर आगे चुनाव क्यों कराए जाएंगे! जब चुनाव नहीं होंगे तो समस्याएं कैसे पैदा की जा सकेंगीं! जब ये होगा तभी तो परेशान जनता रोती -धोती उनके दरबार में जी -हुजूरी करेगी ! उनकी पूंछ बढ़ेगी, ओहदा बढ़ेगा । जिसकी जितनी लम्बी पूंछ ,उतना बड़ा नेता। जनता भी यह बखूबी जानती है कि नेता केवल लेता ही लेता , कुछ भी देता तो सिर्फ आश्वासन देता। बाकी माला लेता , पैसा लेता नहीं तो एक ग्राम प्रधान पाँच। साल में हजार पति से करोड़पति कैसे बनता ! बड़े -बड़े घड़ियालों का तो अनुमान लगाना ही मुश्किल होगा। यहाँ पाँच साल में चोइया मछली भी मगरमच्छ बन जाती है। ये सब जानते हैं।
बेचारे ठेकेदार, पंचायत सेकेट्री , प्रधान ग्राम विकास कराते हैं , तो 60 % ही तो खाते हैं। बाकी 40 % लगाकर बालू की गली - सड़क बनवाकर ऊपर वालों को भी तो खुश करते हैं। तभी तो ऑफिस में ए सी की शीतल हवा और स्प्राइट नमकीन के साथ के जाँच की फाइनल रिपोर्ट लगवा देते हैं। अरे! भाई कितनी जिम्मे दारी का काम है ! बाप रे बॉप!! बड़ी गोहों का अंदाज लगाना अपने वश की बात नहीं । ये ऐसा अचार है, जिसकी खटाई नीचे से ऊपर की ओर बढ़ती , बढ़ती और बढ़ती ही चली जाती है। ये सब जानते हैं। पर भाईजान ! सिर्फ जानने से क्या होता है ? आम के पास चुसने के अलावा औऱ कोई काम हैं ? जानते रहो। जानकर क्या कर लोगे ? तुम्हारे हाथ में है ही क्या? जो उखाड़ लोगे जानकर। ऐसी हजारों जानकारियों से देश के अख़बार भरे पड़े रहते हैं कि कौन अधिकारी रंगे हाथों पकड़ा गया ? पर किसने पकड़ा ? उसी तरह के एक अन्य 'ईमानदार' अधिकारी ने , जो इतना तेज कि अभी तक पकड़ा ही नहीं जा सका! देश को ऐसे ही अमलकारों की जरूरत है। सब जानते हैं ,तो जानते रहो। जनरल नॉलेज के लिए अच्छा है। जानना भी चाहिए। जब सारे कुओं में भाँग पड़ी हो , तो तो तो क्या हो जाएगा? कुछ भी नहीं होने वाला उल्टे ज़्यादा जान लोगे तो किसी कानूनी एक्ट में औऱ धर लिए जाओगे कि कैसे जाना? किससे जाना ? कब जाना? क्यों जाना ? इसलिए न जानने में ही कुशल है। ज़्यादा जानना भी खतरे से ख़ाली नहीं है।
💐शुभमस्तु !
✍लेखक ©
🚩 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
समस्याओं का समाधान देश की प्रगति के लिए कोई हल नहीं है। समस्याओं के बने रहने से कुर्सी बनी रहती है। लोकतंत्र में वैसे ही कुर्सी आसानी से नहीं मिलती , उस पर भी देश , समाज , नगर , गांव को समस्या मुक्त कर दो , तो फिर क्या घुइयाँ छीलोगे ? या झख मारोगे? यदि ऐसा हो भी जाए तो न तो बाज़ार में इतनी घुइयाँ ही हैं , जो सारे नेताओं , अधिकारियों और कर्मचारियों के हिस्से में छीलने को मिल जाएं? औऱ न ही नदियों में इतनी झख (मछलियाँ ) ही हैं , जो काँटा लेकर उन्हें जाल में फंसाते फ़िरो ? इसलिए जैसा है , वैसा ही रहने देने में खैर-खुशी है। ऊपर वाले /वाली भी खुश और नीचे वाले भी खुश कि जाँच चल रही है। जांचोपरांत भले मिलें ढाक के तीन पत्ते ही। जो सब पहले से जानते ही हैं। पर जाँच तो होना जरूरी है तो होगी ही। औऱ जब जाँच होगी तो रिजल्ट भी देगी। जो सबको पहले से ही पता है कि रिजल्ट क्या आने वाला है।
इसलिए मैंने पहले ही कहा न कि यहाँ हर आम औऱ ख़ास को पहले से ही मालूम रहता है कि क्या है , क्या होगा, क्या होने वाला है ! इसलिए यथा स्थिति बनाए रखना , सबसे सुखद व्यवस्था है।जैसे पुलिस को पहले से से मालूम रहता है कि कौन बाइक चोर है ? कौन ककड़ी चोर है? कौन मोबाइल चोर है , कौन गिरहकट और कौन राहजनी का उस्ताद है? इसी प्रकार यदि एक ही पंचवर्षीय योजना में देश की सभी तरह की समस्याओं से यदि निज़ात दिला दी गई तो आगे नेताओं के लिए कोई काम नहीं रह जायेगा! फिर आगे चुनाव क्यों कराए जाएंगे! जब चुनाव नहीं होंगे तो समस्याएं कैसे पैदा की जा सकेंगीं! जब ये होगा तभी तो परेशान जनता रोती -धोती उनके दरबार में जी -हुजूरी करेगी ! उनकी पूंछ बढ़ेगी, ओहदा बढ़ेगा । जिसकी जितनी लम्बी पूंछ ,उतना बड़ा नेता। जनता भी यह बखूबी जानती है कि नेता केवल लेता ही लेता , कुछ भी देता तो सिर्फ आश्वासन देता। बाकी माला लेता , पैसा लेता नहीं तो एक ग्राम प्रधान पाँच। साल में हजार पति से करोड़पति कैसे बनता ! बड़े -बड़े घड़ियालों का तो अनुमान लगाना ही मुश्किल होगा। यहाँ पाँच साल में चोइया मछली भी मगरमच्छ बन जाती है। ये सब जानते हैं।
बेचारे ठेकेदार, पंचायत सेकेट्री , प्रधान ग्राम विकास कराते हैं , तो 60 % ही तो खाते हैं। बाकी 40 % लगाकर बालू की गली - सड़क बनवाकर ऊपर वालों को भी तो खुश करते हैं। तभी तो ऑफिस में ए सी की शीतल हवा और स्प्राइट नमकीन के साथ के जाँच की फाइनल रिपोर्ट लगवा देते हैं। अरे! भाई कितनी जिम्मे दारी का काम है ! बाप रे बॉप!! बड़ी गोहों का अंदाज लगाना अपने वश की बात नहीं । ये ऐसा अचार है, जिसकी खटाई नीचे से ऊपर की ओर बढ़ती , बढ़ती और बढ़ती ही चली जाती है। ये सब जानते हैं। पर भाईजान ! सिर्फ जानने से क्या होता है ? आम के पास चुसने के अलावा औऱ कोई काम हैं ? जानते रहो। जानकर क्या कर लोगे ? तुम्हारे हाथ में है ही क्या? जो उखाड़ लोगे जानकर। ऐसी हजारों जानकारियों से देश के अख़बार भरे पड़े रहते हैं कि कौन अधिकारी रंगे हाथों पकड़ा गया ? पर किसने पकड़ा ? उसी तरह के एक अन्य 'ईमानदार' अधिकारी ने , जो इतना तेज कि अभी तक पकड़ा ही नहीं जा सका! देश को ऐसे ही अमलकारों की जरूरत है। सब जानते हैं ,तो जानते रहो। जनरल नॉलेज के लिए अच्छा है। जानना भी चाहिए। जब सारे कुओं में भाँग पड़ी हो , तो तो तो क्या हो जाएगा? कुछ भी नहीं होने वाला उल्टे ज़्यादा जान लोगे तो किसी कानूनी एक्ट में औऱ धर लिए जाओगे कि कैसे जाना? किससे जाना ? कब जाना? क्यों जाना ? इसलिए न जानने में ही कुशल है। ज़्यादा जानना भी खतरे से ख़ाली नहीं है।
💐शुभमस्तु !
✍लेखक ©
🚩 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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