राष्ट्रवाद की
मखमली चादर,
सजे हुए
जिसके नीचे
ढेर -ढेर गुब्बर।
दिखाए नहीं जाते
उघाड़ कर
वे ढेर-
व्यक्तिवाद,
पत्नीवाद,
पतिवाद,
सन्ततिवाद,
भाई भतीजावाद,
एक शब्द में
कहें तो वंशवाद,
आगे भी हैं
जातिवाद,
धर्मवाद,
मज़हबवाद,
अन्धभक्तवाद,
प्रांतवाद,
क्षेत्रवाद,
भाषावाद।
सबके
अपने -अपने स्वाद,
अपने -अपने नाद,
पर उनके ऊपर
पड़ी हुईं हैं
आदर्शवाद की चादरें
समाजवाद ,
देशवाद,
राष्ट्रवाद,
जिनके ऊपर
छिड़की हुई
आदर्शवाद की
खुशबू गुलाब ,
पर भीतर
वही
वंशवाद,
जातिवाद,
धर्म मज़हबवाद,
अंध भक्तवाद की
स्वार्थवाद की यथार्थवादी
निस्सार खाद।
कौन नहीं है
यहाँ राष्ट्रवादी ?
कौन चाहता है
देश की बरबादी?
जिनके दिमाग़ में
बढ़ गई है वादी,
कर रहे हैं वही
राष्ट्रवाद की नारेबाज़ी,
क्या वही हैं!
जिन्होंने
ओढ़ रखी है
सियासत की खादी?
कर रहे अपने
अहम की मुनादी!
जैसे उन्हीं को हो
सब जायज़ नाजायज़ की
आजादी !
नहीं जानते वे
राष्ट्रवाद का अर्थ,
इसी के बैनर तले
पूरा करना है
उन्हें स्वार्थ।
बने बैठे हैं
वे उसी गोबर में
छिपे हुए गुबरैले,
तानकर ऊपर
मख़मल की चादर!
उठाते ही
मखमली चादर!
निकल पड़ता है
वही गोबर,
जिसे खा रहे हैं
वे धो -धोकर,
यही आज
राष्ट्रवाद का
यथार्थ है,
ऊपर से नीचे तक,
गोबर का
साम्राज्य है,
विस्तार है,
उनकी दृष्टि में
इसी में
देशोद्धार है,
यही सब
गुबरैलों का
'महान' विचार है।
अभी तो और भी
ढेर हैं गोबर के,
जो अगोचर हैं
मेरी तेरी दृष्टि से:
गलीवाद,
मोहल्लावाद,
शहरवाद,
ग्रामवाद,
सडक़वाद,
-दबे हैं
मख़मली चादर के तले।
प्रदूषण को
ढँकना ही जरूरी है,
मखमली चादर के तले!
कहना ही पड़ेगा
चादर -स्वामियों को,
साधुवाद!
साधुवाद !!
साधुवाद !!!
💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🔰 डॉ .भगवत स्वरूप 'शुभम'
मखमली चादर,
सजे हुए
जिसके नीचे
ढेर -ढेर गुब्बर।
दिखाए नहीं जाते
उघाड़ कर
वे ढेर-
व्यक्तिवाद,
पत्नीवाद,
पतिवाद,
सन्ततिवाद,
भाई भतीजावाद,
एक शब्द में
कहें तो वंशवाद,
आगे भी हैं
जातिवाद,
धर्मवाद,
मज़हबवाद,
अन्धभक्तवाद,
प्रांतवाद,
क्षेत्रवाद,
भाषावाद।
सबके
अपने -अपने स्वाद,
अपने -अपने नाद,
पर उनके ऊपर
पड़ी हुईं हैं
आदर्शवाद की चादरें
समाजवाद ,
देशवाद,
राष्ट्रवाद,
जिनके ऊपर
छिड़की हुई
आदर्शवाद की
खुशबू गुलाब ,
पर भीतर
वही
वंशवाद,
जातिवाद,
धर्म मज़हबवाद,
अंध भक्तवाद की
स्वार्थवाद की यथार्थवादी
निस्सार खाद।
कौन नहीं है
यहाँ राष्ट्रवादी ?
कौन चाहता है
देश की बरबादी?
जिनके दिमाग़ में
बढ़ गई है वादी,
कर रहे हैं वही
राष्ट्रवाद की नारेबाज़ी,
क्या वही हैं!
जिन्होंने
ओढ़ रखी है
सियासत की खादी?
कर रहे अपने
अहम की मुनादी!
जैसे उन्हीं को हो
सब जायज़ नाजायज़ की
आजादी !
नहीं जानते वे
राष्ट्रवाद का अर्थ,
इसी के बैनर तले
पूरा करना है
उन्हें स्वार्थ।
बने बैठे हैं
वे उसी गोबर में
छिपे हुए गुबरैले,
तानकर ऊपर
मख़मल की चादर!
उठाते ही
मखमली चादर!
निकल पड़ता है
वही गोबर,
जिसे खा रहे हैं
वे धो -धोकर,
यही आज
राष्ट्रवाद का
यथार्थ है,
ऊपर से नीचे तक,
गोबर का
साम्राज्य है,
विस्तार है,
उनकी दृष्टि में
इसी में
देशोद्धार है,
यही सब
गुबरैलों का
'महान' विचार है।
अभी तो और भी
ढेर हैं गोबर के,
जो अगोचर हैं
मेरी तेरी दृष्टि से:
गलीवाद,
मोहल्लावाद,
शहरवाद,
ग्रामवाद,
सडक़वाद,
-दबे हैं
मख़मली चादर के तले।
प्रदूषण को
ढँकना ही जरूरी है,
मखमली चादर के तले!
कहना ही पड़ेगा
चादर -स्वामियों को,
साधुवाद!
साधुवाद !!
साधुवाद !!!
💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🔰 डॉ .भगवत स्वरूप 'शुभम'
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