रविवार, 4 अगस्त 2019

वृत्त [अतुकान्तिका]

वृत्त ,
जी हाँ वृत्त,
जीवन एक वृत्त है,
कहाँ से चले
कब चले
पता नहीं चलता,
जो होना है,
होना ही है,
कभी नहीं टलता।

चलते रहते हैं हम
निरन्तर
रात दिन
महीनों वर्षों
क्षण प्रति क्षण,
रुकना नहीं
चलते ही जाना है
न रुकना
 न ठिठकना है,
खाकर ठोकरें
बड़ी -छोटी
क्या कोई
रुक सका  है?
क्या रुक सकता है?
संभव नहीं,
क्योंकि हम सभी
समय के अधीन
नियति के अधीन
कहाँ हैं स्वाधीन!
 जो कराना है उन्हें
करा ही लेना है,
करा ही लेते हैं,
और समय की
अटूट पटरी पर
चलते रहते हैं
अनवरत ,
लगातार।

बावजूद इसके
हमें अपने
विवेक की आँखें
खोले ही रखना है,
तभी आगे बढ़ना है,
लौटना पीछे
सम्भव ही कहाँ?
चाहते हुए भी
निरन्तर आगे ही
बढ़ना है,
इसीलिए कहा है
चरैवेति चरैवेति!
 वृत्त पर चलते रहना ही
जीवन है।

💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता©
🌹 डॉ. भगवत स्वरूप  'शुभम'

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