दरबार
साँसों का
नासिका के द्वार
आना-जाना
निरंतर।
क्षणिक
विराम नहीं
विश्राम भी नहीं
अविराम ही
गतिमान।
श्वास
यदि रुके
जीवन भी रुके
गतिशीलता ही
जीवन।
राजा
बैठा है
सिंहासन पर भीतर
श्वास निरंतर
चलती।
जाती
प्राण वायु
भीतर की ओर
लौटती लेकर
कार्बन।
ऑक्सीजन
बन रही
कार्बन डाई ऑक्साइड
लौटने पर
बदली।
जीवात्मा
आया यहाँ
अलग रूप में
गया अलग
रूप।
परिवर्तन
होना है
जीवन में निरंतर
साँसों का
सबक।
बदलना
ही है
दुनिया में आकर
जाने की
सोच।
असम्भव
है अपरिवर्तन
अनिवार्य उत्थान -पतन
मानव का
जीवन।
श्वास
आगमित जीवात्मा
प्रश्वास:प्रस्थान किया
लेकर कार्बन
कण।
श्वास
स्वच्छ वायु
प्रश्वास:कर्म भार
भारित अस्वच्छ
वायु।
श्वास
जीवन -प्रतीक
प्रश्वास:प्रस्थान - लीक
देह से
मुक्ति।
जिएं
श्वासवत जीवन
त्यागें श्वासवत ही
शुद्ध जीवन -
मुक्ति।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
☘ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
साँसों का
नासिका के द्वार
आना-जाना
निरंतर।
क्षणिक
विराम नहीं
विश्राम भी नहीं
अविराम ही
गतिमान।
श्वास
यदि रुके
जीवन भी रुके
गतिशीलता ही
जीवन।
राजा
बैठा है
सिंहासन पर भीतर
श्वास निरंतर
चलती।
जाती
प्राण वायु
भीतर की ओर
लौटती लेकर
कार्बन।
ऑक्सीजन
बन रही
कार्बन डाई ऑक्साइड
लौटने पर
बदली।
जीवात्मा
आया यहाँ
अलग रूप में
गया अलग
रूप।
परिवर्तन
होना है
जीवन में निरंतर
साँसों का
सबक।
बदलना
ही है
दुनिया में आकर
जाने की
सोच।
असम्भव
है अपरिवर्तन
अनिवार्य उत्थान -पतन
मानव का
जीवन।
श्वास
आगमित जीवात्मा
प्रश्वास:प्रस्थान किया
लेकर कार्बन
कण।
श्वास
स्वच्छ वायु
प्रश्वास:कर्म भार
भारित अस्वच्छ
वायु।
श्वास
जीवन -प्रतीक
प्रश्वास:प्रस्थान - लीक
देह से
मुक्ति।
जिएं
श्वासवत जीवन
त्यागें श्वासवत ही
शुद्ध जीवन -
मुक्ति।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
☘ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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