रविवार, 4 अगस्त 2019

फ़ुहार की गुहार [ गीतिका ]

बादलो  क्यों    गरजते  हो,
बरस   क्यों    जाते    नहीं!
प्यास  से  मरती  धरा  पर,
तरस    क्यों   खाते  नहीं।।

व्यर्थ  ही  क्यों  घुमड़ते  हो,
नील     अम्बर     में    घने।
आश    धरती   पर  जगाते,
श्याम  छाते  -   से     तने।।

बरस  कर   बंजर  धरा पर,
क्या      जताना     चाहते?
बाग़  वन    जन जीव  सारे,
को       सताना    चाहते??

अतिवृष्टि  का मंजर विकट,
बाढ़     का      आतंक  भी।
इधर क्यों  जलकण नहीं है,
सूखता      है     पंक   भी।।

वल्लरी    मुरझा    रही   है,
सूख    गिरते      पात   भी।
पुष्प   मुख  लटका  खड़े हैं,
गिर  गए  तरु  -  गात  भी।।

चोंच    खोले    आश  में है,
प्यास  से   पिक   मर  रहा।
मौन  कोयल- गान क्यों हो!
बोलने      से     डर  रहा।।

कृषक  नभ  पर  देखता है,
प्यास    आँखों     में जगी।
हरित  आँचल   देखने  की,
लालसा     उर    में   पगी।।

रुष्ट      क्यों     देवेंद्र     हैं ,
प्रार्थना      उनसे       करें।
वृष्टि  कर प्यासी  धरा की,
वेदना     जग     की  हरें।।

मेघ   आओ  बरस जाओ,
प्यास  से      मरती  धरा।
जल दरारों  को पिला दो,
सब    कहीं   होगा हरा।।

मत   दिखाओ  आँख टेढ़ी,
बरस   जाओ    आज   ही।
'शुभम'  प्यासे तुष्ट हों सब,
सुलभ हों सुख-साज ही।।

💐 शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
☔ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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