शनिवार, 3 अगस्त 2019

अख़बार [ बालगीत ]

आता   रोज़  नया अख़बार।
खबरों का   ताज़ा  अम्बार।।

घटित  हो  रहा गाँव नगर में।
कस्बों   में   या महानगर में।।
सबकी ख़बर   हमें पढ़वाता।
अच्छी -बुरी सभी बतलाता।।
विज्ञापन    के  चित्र  अपार।
आता रोज नया ....

कहाँ  बाढ़ या कितना बरसा।
पीने को जल मानव तरसा।।
नाले -  नाली   उफ़न  रहे हैं।
मच्छर दंशक   उछल रहे हैं।।
मलेरिया    से  जन -  बीमार।
आता रोज़ नया ....

भीषण गर्मी जन-जन प्यासा।
कोशिश पूरी  बहुत निराशा।।
जाड़ों  में    तुषार   हिमपात।
थर-थर पशु खग मानवजात।
क्या होगा-  इसका   उपचार!
आता रोज नया ....

त्यौहारों   का   हाल  सुनाता।
होली   रक्षाबंधन   मनवाता।।
दीवाली   के   दीपक  जलते।
खुशी   मनाते  ख़ूब उछलते।।
मौसम  का   संदेश -  प्रचार।
आता रोज नया  ......

चोरी   राहजनी   की  घटना।
राजनीति    से   कैसे बचना।।
नेता  कौन  क्या   कहता है?
अखबारों  में  सब रहता  है।।
शिक्षा के   सब   सुसमाचार।
आता रोज़ नया ....

उग्रवाद     बढ़ता     है   रोज़।
सीमा पर   भारत की फौज।।
पाक बड़ा   नापाक  हो गया।
मानवता को भूल  खो गया।।
वार   शत्रु   का  सीमा - पार।
आता रोज़ नया ...

संपादक  जी भी लिखते हैं।
पढ़ते कितने जन दिखते हैं??
खेल फ़िल्म   के छपते हाल।
कुत्ता खोया  बड़ा  मलाल??
अर्थव्यवस्था       कारोबार।
आता रोज़ नया ....

💐 शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
🧾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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