शक्ति शौर्य और पराक्रम
इनका भी है
अपना कोई क्रम,
पर
साहस बिना
शक्ति ?
शर्म ही शर्म ।
जीवन एक संघर्ष
माँगता
प्रतिपल उत्कर्ष,
सह रुदन
अथवा सह हर्ष,
अहर्निश वर्षों वर्ष,
वांछित है साहस
शक्ति के संग,
वरना
नहीं आएगा
जीवन में रङ्ग,
परिस्थतियों से जूझना,
तमस में
प्रकाश सूझना ,
एक पराक्रम ही तो है।
युध्द के मोर्चे पर
जूझना
शक्ति और साहस के संग
आवश्यकता है
समय की,
कायर नहीं होना
दुश्मन को
नहीं दिखाना पीठ,
तभी है
सब कुछ ठीक,
यही है
हर योद्धा को सीख।
जीवन के
मोर्चे पर सभी
पराक्रमी सिद्ध
सफल नहीं होते,
आत्मरक्षा
व्यक्ति - रक्षा
परिवार - रक्षा
समाज - रक्षा
चरित्र - रक्षा
धन - रक्षा
दायित्व - रक्षा
देश -रक्षा ,
मोर्चे ही मोर्चे,
आवश्यकता है सर्वत्र
शक्ति शौर्य और
पराक्रम की।
सभी के लिए
खुले हैं
अधिकांश मोर्चे,
अपने अस्तित्व के लिए,
जहाँ पराक्रम
दिखाना ही है,
चरित्र -रक्षा
दुरूह ,
बाहर से कुछ
अंदर पनपते व्यूह,
सहज नहीं है,
देह के प्रति
अंधासक्ति ही
चरित्र नहीं,
चोरी , ग़बन, राहजन,
रिश्वत,ठगी , अपहरण,
जनता का शोषण,
धोखा ,पर नारी
या परपुरुष गमन,
सभी हैं चरित्र- हनन।
पर देश -रक्षा
एक अलग ही दायित्व,
अलग ही महत्व,
दुश्मन से बचाना,
शून्य से नीचे तापक्रम,
अडिग ड्यूटी पर,
न भोजन न शयन,
मात्र ड्यूटी का निर्वहन,
चौकन्ना प्रतिक्षण,
आत्मरक्षा में
गोलियों का ध्वनन,
न फिक्र घर की,
न बच्चों की घरनी की,
बस एक ही लगन
रक्षा जन्मभूमि की
धरनी की।
यही हैं पराक्रमी सच्चे
देश के नागरिक
सच्चे देशभक्त ,
जो देशरक्षा के
वास्ते अनुरक्त,
तन से ही नहीं
मन से भी सशक्त,
सही अर्थों में
जीवनमुक्त देशभक्त।
न गेरुआ में अनुरक्त,
न मोहताज दिखावे के,
न तिलक छाप
न कंठी माला ,
देह पर नहीं
रेशमी दुशाला,
तूफानों ने जिन्हें
साँचे में ढाला।
वहीं उनकी
दिवाली है
दशहरा रक्षाबंधन होली है,
मातृभूमि की माटी ही
ललाट पर उनके
'शुभम'चंदन रोली है।
💐 शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
👮 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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