भिन्नता की भीति
[ दोहे ]
दो आँखों के बीच में,
बनी एक दीवार।
नाक जिसे कहते सभी,
साँसों का दरबार।।1।
आँख लड़े नहिं आँख से,
हो न सके तकरार।
ऊँची लम्बी नाक ये,
निर्मित की करतार।।2।
मान -प्रतिष्ठा की बनी,
शुभ प्रतीक यह नाक।
हर उपाय रक्षा करे,
होवे बाल न बाँक।।3।
सूपनखा की नाक जब,
लक्ष्मण ने दी काट।
हरी गईं माँ जानकी,
लंकाकाण्ड विराट।।4।
भीति भिन्नता की बनी,
सदा - सदा से नाक।
रक्षा करने नाक की,
जूझे भारत पाक।।5।
बाल नाक के नाक की,
रक्षा - सूत्र सशक्त।
इसीलिए प्रियजन वही,
जो हो ऐसा भक्त।।6।
मात-पिता के नाक की,
रक्षक है संतान।
यदि कुपूत - काँटा उगे,
मिट जाता सम्मान।।7।
नाक कटा घी चाटते,
डालें नाक नकेल।
ऐसे जन नर - देह में,
नाकों पीते तेल।।8।
नाक घुसाते आप ही,
अनवांछित जो लोग।
नाक रगड़ते एक दिन,
अहंकार का रोग।।9।
मक्खी जिनकी नाक पर,
बैठ न पाती एक।
'शुभम' सुजन वे चतुर हैं,
रखते सदा विवेक ।।10।
दम करते हैं नाक में,
पहले घर - परिवार।
सिकुड़ी रहती नाक-भौं,
दुखी रहे संसार।।11।
नाक फुलाने से नहीं,
चलता जग - व्यवहार।
चाम न कोई पूजता,
पूज्य कर्म का द्वार।।12।
शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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