सोमवार, 19 अगस्त 2019

भिन्नता की भीति

 भिन्नता की भीति 
               [ दोहे ]


दो  आँखों   के   बीच में,
बनी        एक     दीवार।
नाक  जिसे  कहते सभी,
साँसों    का  दरबार।।1।

आँख लड़े नहिं आँख से,
हो    न    सके   तकरार।
ऊँची   लम्बी    नाक  ये,
निर्मित  की  करतार।।2।

मान -प्रतिष्ठा   की  बनी,
शुभ  प्रतीक  यह  नाक।
हर   उपाय   रक्षा    करे,
होवे  बाल  न  बाँक।।3।

सूपनखा  की नाक जब,
लक्ष्मण   ने    दी   काट।
हरी  गईं   माँ    जानकी,
लंकाकाण्ड  विराट।।4।

भीति भिन्नता  की बनी,
सदा  - सदा   से  नाक।
रक्षा    करने   नाक की,
जूझे  भारत  पाक।।5।

बाल नाक के नाक की,
रक्षा - सूत्र      सशक्त।
इसीलिए प्रियजन वही,
जो  हो ऐसा  भक्त।।6।

मात-पिता के  नाक की,
रक्षक      है       संतान।
यदि  कुपूत - काँटा उगे,
मिट  जाता सम्मान।।7।

नाक   कटा  घी  चाटते,
डालें     नाक     नकेल।
ऐसे   जन  नर - देह  में,
नाकों    पीते   तेल।।8।

नाक   घुसाते  आप  ही,
अनवांछित  जो   लोग।
नाक  रगड़ते  एक दिन,
अहंकार    का  रोग।।9।

मक्खी जिनकी नाक पर,
बैठ     न    पाती     एक।
'शुभम' सुजन वे चतुर हैं,
रखते सदा विवेक ।।10।

दम    करते  हैं  नाक  में,
पहले     घर -   परिवार।
सिकुड़ी रहती नाक-भौं,
दुखी   रहे  संसार।।11।

नाक   फुलाने  से   नहीं,
चलता   जग - व्यवहार।
चाम   न  कोई    पूजता,
पूज्य कर्म का द्वार।।12।

 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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