रविवार, 11 अगस्त 2019

सावन मास वसंत [ दोहे ]

एक     तीर      ऐसे  चला ,
दो -   दो    लगे    निशान।
पूरी    आज़ादी       मिली,
आन  मान औ'   शान।।1।

एक    तीर    में  पाक का ,
छूट    गया    सब     धीर।
नापाकी     करतूत     की,
मिटी जलन उर  पीर।।2।

एक    देश   में   एक    ही,
चलता     नियम   विधान।
ध्वज  प्रधान  सब एक ही,
जन-जन  एक समान।।3।

दो    हज़ार    उन्नीस   का,
सावन     मास      महान।
नागपंचमी     को    मिला ,
सबको   एक  वितान।।4।

नेत्र    तीसरा    खुल  गया ,
काली       धारा      अन्त।
केशर    क्यारी   में  खिला ,
सावन    मास    वसंत।।5।

जिन्हें    न  भावे   देशहित,
आस्तीन      के       साँप।
जूता     मारें    जनक   में,
कहें  और   को   बाप।।6।

घुट -  घुटकर    जीता रहा ,
धरा  -     स्वर्ग     कश्मीर।
तीन सौ सत्तर  जब  मिटी,
सरकी   स्वच्छ  समीर।।7।

रक्षक -  सैनिक   पर  करें ,
पत्थर      फेंक      प्रहार।
एक  वार    में    हो  गया ,
सबका       उपसंहार।।8।

पानी     का    पानी  हुआ ,
हुआ     दूध    का     दूध।
पाक    टापता   रह   गया,
मिला   मूल   मय  सूद।।9।

गलित   सियासत    के हुए ,
सारे         परदे       फाश।
जाहिर      नंगापन    हुआ ,
'शुभम' विकट उपहास।10।

💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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