रविवार, 11 अगस्त 2019

आज़ादी [ गीत ]

मिला रहे हैं धनिये में लीद,
क्या    यही    आज़ादी  है?
सो    रहे   हैं चैन  की नींद ,
क्या   यही  आज़ादी   है ??

आदमीआदमी का पी रहा है खून।
रोटी नहीं मयस्सर किसी किसी को दो जून।।
लूटो और खाओ की अनकही
मुनादी है।
मिला रहे हैं .....

पिला रहे हैं दूध यूरिया का क्या ग़म है!
सब्जियाँ फ़ल भी यहाँ ज़हर से नम हैं।।
सूख रही है इधर चमड़ी उधर
वादी है ।
मिला रहे हैं....

रिश्वती रिश्वत देकर के छूट जाते हैं ।
नौकरी तो है, मगर जेबों से लूट खाते हैं।।
आम आदमी की हर ओर ही
बर्वादी है।
मिला रहे हैं ...

पॉलीथिन बंद करो, कम्पनी चलेगी ही।
दुकानदारों को लूटने की ,
नीति न टलेगी ही।।
खिलाने वाले रहें आबाद, बढ़े
आबादी है। 
मिला रहे हैं .....

दिन दहाड़े लुट रहा है  आदमी ।
लूट के बाद में जाँच भी
है लाज़मी।।
अपनों की कैद का हर शख़्स 
आदी है।
मिला रहे हैं .....

चले गए जो फिरंगी वे विदेशी हैं।
खसोटते हैं दिनरात  ये तो स्वदेशी हैं??
खद्दर पहनने वाले तो सभी
आज गांधी हैं।
मिला रहे हैं ....

हर मोड़ पर ठग चोर मिलेंगे सारे।
किससे शिक़ायत किससे कहोगे प्यारे!!
हर तीसरा चेहरा 'शुभम' अपराधी है।
मिला रहे हैं ... 

💐 शुभमस्तु!
✍ रचयिता ©
✳ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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