बुधवार, 14 अगस्त 2019

कविता की महिमा [कुण्डलिया]

कविता   की   महिमा  नहीं,
समझ   सके    सब    लोग।
मालपुआ   चमचम    मधुर,
समझे      छप्पन     भोग।।
समझे       छप्पन      भोग,
नाचती      षोडशि   बाला।
कर     में     लेकर     जाम,
दे   रही     मादक   हाला।।
 नहीं       पतुरिया     नाच,
गगन  ज्यों   चमके सविता।
कवि -  मंडल     के    बीच ,
'शुभम' नित  होती कविता।।

कविता कवि -  उर से रिसे,
ज्यों      गोमुख   से   गंग ।
लय  गति    छंदों    में  बहे,
शब्द    अर्थ     के    संग।।
शब्द    अर्थ      के     संग,
प्रवाहित      लहराती    है।
मैदानों         के        मध्य ,
नदी    ज्यों    बल  खाती  है।।
सुधी        जनों    की   वीचि,
मानसिक  दुख     की हरिता।
'शुभम'      अमंगल     क्षीण ,
करे    मुद    मंगल  कविता।।

कविता    का    वरदान  है ,
किया      मातु      उद्धार ।
गिरने       से   रक्षा    करे ,
जीवन  -    पर   उपकार।।
जीवन  -      पर उपकार ,
धन्य  माँ पल -पल करती।
उर  का   तमस -  विकार,
एक  ही  क्षण    में हरती।।
हंसवाहिनी              धीर,
ज्ञान-धन की नित भरिता।
'शुभम'   हृदय   में    वास,
करो  माँ   वाणी  कविता।।

कविता     रस -  वर्षा  करे,
सुहृद   करें        अभिषेक।
पाहन     तो    पाहन   रहे,
उसमें     कहाँ    विवेक ??
उसमें     कहाँ       विवेक,
भावपूरित     नर  -  नारी।
भाव       सदा    ही  नेक ,
जगत- हित ममता  भारी।।
अंधकार      के        बीच ,
चमकता अम्बर   सविता ।
'शुभम'    सृजन    संसार ,
सदा   हितकारी  कविता।।

कविता   कहती  रुक नहीं,
बढ़    चल    आगे    और।
बारह      मास     वसंत है ,
महक     उठेगा       बौर।।
महक     उठेगा        बौर,
आम  पर   कोयल   बोले ।
पिक     मयूर     की   धूम,
प्रकृति  में  मधुरस  घोले।।
 निशि  में     चमके   सोम ,
दिवस में उज्ज्वल सविता।
'शुभम  ' अनवरत      नेह-
धार  बन   गंगा - कविता।।

💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🕉 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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