गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

निष्कर्ष :घरबंदी के [ लघु लेख ]

निष्कर्ष :घरबंदी के
 [ लघु लेख ]
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 ✍ लेखक ©
 🏡 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम' 
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        दस दिन तक देश को 'घरबंदी' में रहने के बाद कुछ चौंकाने वाले निष्कर्ष निकलकर आए हैं, जिन्हें जानना और समझना बहुत आवश्यक हो गया है। जब कोई निष्कर्ष हमें चौंकने के लिए विवश कर देता है ,तो उस पर चिंतन करना भी आवश्यक होता है।
 1. ' घरबंदी बनाम घेराबंदी ': अन्य पशुओं , पक्षियों , कीड़े -मकोड़ों ,जलचरों आदि की तरह मानव भी उन्हीं में से एक प्रजाति है।अब यह स्पष्ट हो गया है कि उन सबकी तरह यह भी अपने घरों में बंद होकर नहीं रह सकती।सरकार के द्वारा की तो घरबंदी गई थी , किन्तु उसकी अन्य प्रजातीय जीवों की तरह वह 'घेराबंदी ' ही साबित हुई, क्योंकि उसके भले के लिए , उसकी प्राणरक्षा के लिए पुलिस , मिलिट्री आदि की व्यवस्था इसीलिए की गई थी। लेकिन वह घर में बैठने वाला जीव कहाँ है ? उसकी असलियत खुलकर सामने आ गई। पुलिस वाले नियत स्थानों पर (सड़क , चौराहे आदि ) घर से निकलने वाले लोगों की घेराबंदी करते हुए नज़र आए। लेकिन घरों में बंद रहना उसके लिए असम्भव हो गया। और वह घर के दरवाजे , खिड़की , गली ,सड़क पर नजारा लेने के लिए बाहर आ गया। पुलिस ने अपनी ड्यूटी की और कर भी रही है। पर यह मानव प्रजाति मानने वाली नहीं है। अब प्रत्येक दरवाजे पर पहरा तो नहीं बिठाया जा सकता। 'लातों के देव बातों से नहीं मानते ।'
 2.'मानव के लिए घर अनावश्यक ' ! : मानव ने अपने रहने के लिए जो घर बनाये हैं , उसकी उन्हें कोई आवश्यकता नहीं है। घर तो केवल खाने औऱ सोने के लिए ही हैं। दुकान , ऑफिस , वाहन , सड़क , कल ,कारखाने , कंपनियां ही वे जगह हैं , जहाँ मानव को शांति मिलती है। उसका ज्यादातर समय इन्हीं में व्यतीत होता है। घर तो केवल एक शो पीस हैं, क्योंकि अपना पैसा भी वह घर पर नहीं रखता। बैंक में रखता है। उसकी अधिकांश जरूरतें बाहर ही पूरी होती हैं।इसलिए उसके लिए घरबन्दी किस काम की?
 3. 'अविश्वासी मानव': मानव प्रजाति मरने से भी नहीं डरती । जिस रोग के कारण उसे बचाने का प्रयास सरकार द्वारा महीनों पहले से किया जा रहा है, उसके प्रति उसे कोई विश्वास नहीं है। जितने अधिक उपाय सुझाए जा रहे हैं, वह उतना ही उनके प्रति उनका उपहास करता हुआ दिखाई दे रहा है। वह अदृश्य में विश्वास ही नहीं करता , इसीलिए तो पत्थरों में भगवान की खोज करता है।जब ईश्वर निराकार नहीं तो कोई बीमारी निराकार कैसे हो सकती है !
 4.'मानव सभ्यता :एक दिखावा': मानव प्रजाति का संस्कार कपड़े पहनने का नहीं है। इसलिए वह अपनी नंगई का प्रदर्शन गाहे बगाहे करता रहता है। स्त्री को खुश करने के लिए ग्रंथों में लिख दिया गया कि नारी में पुरुष की अपेक्षा लज्जा आठ गुना अधिक होती है। लेकिन नारी द्वारा पहने जा रहे वस्त्रों से साफ दिखाई देता है कि उसे अपनी देह के प्रदर्शन का कितना चाव है! पता नहीं क्यों वह आंशिक देहांग किस मजबूरी में ढके रहती है? जिसे सभ्यता कहा जाता है। सभ्यता : अर्थात ऊपरी आवरण , जिसे जब चाहें उतार कर रखा जा सकता है।समुद्र के किनारे धूप दर्शन के बहाने उनकी वह चाह भी पूरी करती हुई देखी जा सकती है।
 5.'नियम और कानून का दुश्मन :मानव ': नियम और कानून को पहले बनाना और उसी मानव के द्वारा तोड़ना , यह उसका प्रिय शौक है। घरबन्दी में इसे बखूबी देखा जा रहा है। उससे कहा गया कि घर में रहो ,तो वह दरवाजों से झाँक रहा है। कोई न कोई बहाना लेकर बाहर जाना ही है। जो जा रहा है , डंडा भी खा रहा है।कोई दुकान के सामने बैठा हुआ है कि कोई ग्राहक आए तो उसे सौदा दे दे। कुछ तो इनकम हो ! बीमार होने और मरने को तिलांजलि देकर ग्राहक का इंतजार कर रहा है। बगीचे में लिख दिया जाए कि फूल तोड़ना मना है। तो वह सोचता है , क्यों न तोड़ा जाए। अहंकारी नेता , गुंडे आदि टॉल प्लाजा पर बिना टॉल दिए इसीलिए तो निकलना चाहते हैं।घरबन्दी में यह खूब देखा जा रहा है।
 6.'मानव -विनाश का पूर्वाभ्यास':एकमात्र मानव ही ऐसी प्रजाति है ,जिसे अपने ही हितैषियों , शुभचिंतकों का विश्वास नहीं है। ये तीर ,कमान, भाले, बर्छी, बंदूकें, पिस्टल , स्टेनगन , तोप, मिसाइल , परमाणु बम, हाइड्रोजन बम , जैविक बम , वायरस बम आदि उसने मानव को मारने और दुनिया से मिटाने के लिए ही बनाये हैं न? किसी चूहे , बिल्ली , कुत्ते , लोमड़ी , सियार , हाथी , गधे , घोड़े , मच्छर , बर्र , खटमल आदि को मारने के लिए नहीं बनाए। मानव की यदि कोई सबसे बड़ी शत्रु प्रजाति है तो वह और कोई नहीं वह स्वयं मानव ही है। वही उसके लिए सबसे बड़ा खतरा है। प्रकृति उसे नष्ट करे या न करे , लेकिन एक न एक दिन मानव मानव के कारण ही नष्ट हो जाएगा। इस समय इसका पूर्वाभ्यास चल रहा है। एक सूक्ष्म वायरस के कारण मानव का असमय विनाश हो रहा है। यह सिलसिला कब तक चलेगा , कोई नहीं जानता।
 7.' श्मशान में सोहर ': मानव प्रजाति वक्त की नज़ाकत को नहीं समझती। महाविनाशात्मक बीमारी का ऐसा उपहास विश्व के इतिहास ने शायद कभी नहीं देखा है । वह अपना ही उपहास करता हुआ दिखाई दे रहा है। यदि शासन और प्रशासन का डंडा मजबूत नहीं होता तो वह गलियों औऱ सड़कों पर नंगा नाच करता हुआ दिखाई देता। हजारों विश्व के लोग मर रहे हैं। उधर सोशल मीडिया पर देखा जा रहा कि अनेक चुटकुले , ऑडियो , वीडियो , बनाकर श्मशान में सोहर गाया जा रहा है।दूल्हे के बैंड बजाए जा रहे हैं।वाह रे ! क्रूर इंसान ! तेरी इस कायरता को हजार बार धिक्कार ! लाखों बार धिक्कार !!
 8.'आदमी ही विषाणु': मानव प्रजाति के लिए मानव ही सबसे बड़ा विषाणु (वायरस ) है। विज्ञान का उपयोग क्या मानव विनाश के लिए ही किया जाएगा ? अपने को विश्व के उच्चतम शिखर पर देखने की आकांक्षा उससे क्या कुछ नहीं करवा लेगी !जब वह।सम्पूर्ण मानव जाति का विनाश कर लेगा तो अपनी अपरिमित खुशी का साझेदार किसे बनाएगा !क्या महाराजा युधिष्ठिर को महाभारत के बाद अपनों की ही लाशें बिछाकर सच्ची खुशी हासिल हुई ? स्व विनाश के बाद कोई विक्षिप्त ही अट्टहास कर सकता है।लेकिन ये ज्ञान -विज्ञान का पुतला क्या इसी लिए है ?
         इसी प्रकार के बहुत से निष्कर्ष हैं जो इस विषाणु की विभीषिका ने मानव के समक्ष विचार करने के लिए छोड़ दिये हैं। जिसे मानवता कहा जाता है , वह अब ढूंढने पर ही मिलेगी।समाजसेवियों , पुलिस प्रशासन , चिकित्सा विभाग अपने प्राणों की परवाह किए बिना मानव जाति को बचाने के लिए रात - दिन एक कर रहा है। लेकिन कहावत वहीं है :बकरा जान से गया औऱ खाने वाले को स्वाद ही नहीं आया? सरकारी मदद का अनुचित लाभ लेने वाले लोग घरों में स्टॉक कर रहे हैं।उसे इकट्ठा करके बेच रहे हैं। दूसरों के हक पर डाका इसी को कहते हैं।कुछ ऐसे भी हैं जो अपनी धार्मिकता के प्रचार की आड़ में रोग का प्रसार कर बेशर्मी की सीमाएँ तोड़ रहे हैं। जिस थाली में खाकर उसी में छेद करना इसी को कहते हैं। धिक्कार है ऐसे लोगों पर जो इंसान के जिस्म में नरभक्षी बने हुए हैं।
 ईश्वर सबका कल्याण करे।
हम तो फिर भी यही कहेंगे:
 सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित दुःखभाक भवेत

 💐 शुभमस्तु !
 02.04.2020 ◆11.00 पूर्वाह्न।

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