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✍ शब्दकार ©
🌸 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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अमरीकाऔ' चीन की,मिली भगत का खेल।
कोरोना के रूप में ,जगत रहा है झेल।।
जगत रहा है झेल, खुल गई पोल तुम्हारी।
कीचड़ रहे उछाल, समस्या भीषण भारी।।
'शुभम ' अहं का बीज , नहीं होता है नीका।
रक्तबीज की पौध, बो रहा है अमरीका।।
खोदे जो गड्ढे यहाँ, गिरता पहले आप।
दीवारें भी फोड़कर ,फट पड़ता है पाप।।
फट पड़ता है पाप, छिपाए नहीं छिपा है।
चीनी नगर वुहान, शर्म से नहीं झिपा है।।
' शुभम' छेड़ता श्वान,प्रथम उसको ही रौंदे।
गिरता पहले आप, और को गड्ढे खोदे।।
बोते जैसे कर्म - कण, उगते वैसे पेड़।
मधुमक्खी के झुंड को, मत अँगुली से छेड़।।
मत अँगुली से छेड़,डरे जब शामत आए।।
बंदर - सा मुँह लाल ,जिंदगी भर पछताए।।
'शुभम' कर्म के बीज, मनुज के अच्छे होते।
देते वे फल -फूल , अगर वे शुभतम बोते।।
झूठा निज दुष्कर्म से, ठगता सब संसार।
खुले पोल जो झूठ की,झुकती नज़र अपार।
झुकती नज़रअपार,दोष औरों पर मढ़ता।
बेशर्मी सिर लाद,और भी ऊपर चढ़ता।।
'शुभम 'पड़ौसी चीन,जला ज्यों बिरवा ठूठा।
इतराया है आज ,क्रूर अँख मिच्चा झूठा।।
सोचा था जितना उसे, पाया उससे नीच।
वर्ण बदलकर देख लें,नीच शब्द की कीच।।
नीच शब्द की कीच , बीच दुनिया के आई।
कोरोना की भीति , नील अम्बर में छाई।।
'शुभम ' सत्त्व संसार,नहीं कोई लोचा था।
लगें शवों के ढेर , चीन ने ही सोचा था।।
💐 शुभमस्तु !
14.04.2020 ◆ 1.15अपराह्न।
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