मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

जैसी मन की सोच हो [ कुंडलिया ]


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✍ शब्दकार ©
🪔 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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                         1
जैसी   मन   की सोच है,वैसे ही फल फूल।
सोचा     अगर बबूल है,चुभें  देह में  शूल।।
चुभें    देह  में शूल ,रसीले    आम न   पावें।
मन  के यथा विचार,तथा सारे फल  लावें।।
रहना 'शुभम'  सकार, न धी हो ऐसी  वैसी।
हृदय -भाव ही मूल,सोच हो मन की जैसी।।

                           2
छोटे अणुवत बीज से,  जमता है   वटमूल।
धरती पर ताने खड़ा ,अपना उच्च  दुकूल।।
अपना उच्च दुकूल, छाँव देता नित शीतल।
मिलती सबको शांति,सराहे सबका हीतल।।
'शुभम'नहीं आकार, कर्मफल बनकर लौटे।
करते   हैं  घट पूर,   भले   हों छोटे - छोटे।।

                         3
विज्ञापन   करते नहीं ,जो  हैं पुरुष  महान।
टी वी   या अख़बार में,नहीं दिखाते शान।।
नहीं  दिखाते   शान,  बजाते नहीं    नगाड़े।
बिना  किए चालाक, लोमड़ी बादल  फाड़े।।
'शुभम'  नहीं पहचान, न  कोई ऐसा मापन।
सेल्फी  देते  भेज,  वीडियो  में  विज्ञापन।।

                           4
कोरोना   के  नाम  से ,   चोर हुए    आबाद।
मदद मिली घर में भरी, कर झूठी फ़रियाद।।
कर   झूठी   फरियाद ,    बेचने की    तैयारी।
देखो  तो  वरदान ,  बनी  उनको   बीमारी।।
'शुभम'  बेशरम लोग , देश  का ये  ही होना।
संक्रामक   नीच जमात   ,नसे कैसे  कोरोना!!

                            5
दूध  पिलाया नाग को,उगला ज़हर अकूत।
नहीं   बात ये मानते, नीच  लात  के भूत।।
नीच लात के भूत , उचित  डंडे  की  भाषा।
भावी देखा आज ,नहीं तिनके भर   आशा।।
नेताओं    ने  पाल, नागदल  खूब जिलाया।
'शुभम'सँभलजा देश,मतों का दूध पिलाया।

💐 शुभमस्तु !

06.04.2020 ◆2.30 अपराह्न।

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