शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

गरीब के खून की मशाल [ व्यंग्य ]


◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
 ✍ लेखक ©
 🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम' 
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ 
               कौन नहीं जानता कि खून का रंग लाल होता है।अमीर , गरीब, नेता , अधिकारी, नौकर , कर्मचारी, भिखारी, नर और नारी , शादीशुदा , ब्रह्मचारी - सभी का खून लाल ही होता है। पर आदमी ने अपनी ही तरह खून को भी चार समूहों  में बाँट दिया।लेकिन सबका रंग वही लाल का लाल ही रहा। इन सभी खूनों में एक तत्त्व ऐसा भी है जो 99.99%प्रतिशत लोगों में समाविष्ट है। अब जो चीज खून में एक अनिवार्य तत्त्व के रूप में विद्यमान हो , उसकी चर्चा क्यों की जाए ? कोई भी उस अनिवार्य तत्त्व की चर्चा न करना चाहता है और न सुनना ही पसंद करता है, क्योंकि वह तो उसमें भी पहले से ही विद्यमान है। पर आज हम उसकी चर्चा करने बैठ गए तो बैठ ही गए।
            जिसे सारा देश और जमाना भ्रष्टाचार और बेईमानी कहता है। इस देश में सदाचार और ईमानदारी ऐसे गायब हो गई है , जैसे हाथी के सिर से सींग। हमारा देश कोई गधा थोड़े ही है , जो गधे के सिर से सींग गायब होना कहा जाए। यह देश तो ऋषियों मुनियों की संतान वाला गौरवशाली देश है। अब यह तो शोध का विषय है कि भ्रष्टाचार और बेईमानी के पवित्र तत्त्व इस देश के रक्त में कब से समाहित हुए। कैसे और कहाँ से आगमन हुआ ? जब कोई चीज हमारी समझ से परे हो जाती है , तो हम विदेशी ताकतों पर पल्ला झाड़कर कमर पर हाथ ऐंठकर खड़े हो जाते हैं। हो सकता है कि भारत में आर्यों की तरह भ्रष्टाचार भी बाहर से आ गया हो। सबसे मजे की बात यह है कि हमारे रक्त के सभी समूहों ने उसे ऐसे स्वीकार कर लिया है , जैसे प्लास्टिक सर्जरी में जांघ की चमड़ी नाक पर सुशोभित होकर नाकवास (स्वर्ग में वास) प्राप्त कर लेती है।

               बेईमानी की बात तो अब कोई बहुत दकियानूसी या पिछड़ा हुआ आदमी ही कर सकता है। अब टी वी,  अखबारों में भ्रष्टाचार की बात देख , सुन या पढ़कर कोई चोंकता नहीं है। क्योंकि यह इस देश के लिए कोई बड़ी बात नहीं है। अब ईमानदारी हमें चोंकाती है। हमें आश्चर्य होता है कि आज ऐसे मूर्ख भी अस्तित्व में हैं , जो ईमानदारी का तमगा गले में डाले घूमते हैं। आज यदि दिन में 1000 वाट का टॉर्च लेकर खोजा जाए , तो एक भी ईमानदार मिलना असम्भव होगा। हाँ, इतना तो मानना ही पड़ेगा कि आज केवल वही ईमानदार है ,जिसे बेईमानी करने , चोरी करने , गबन करने , रिश्वत लेने, कमीशन खाने , बख्शीश पाने का सुअवसर ही प्राप्त नहीं हुआ।
             आज के युग में ऐसा व्यक्ति बेचारा है , क्योंकि उसे चारा ही नहीं मिला। चारे के नाम पर लोग यहाँ पुल, सरिया , सीमेंट , ईंट और न जाने क्या - क्या खा गए! अब तो ये सब छोटी - छोटी बातें हैं। अब तो बैंकों को खाने का क्रम लंबे समय से चल रहा है। लेकिन यह सबके सामर्थ्य की बात नहीं है। व्यापारी , अधिकारी , कर्मचारी , पंसारी, भंडारी, सबकी अपनी सीमा है। कोई रेलवे का कोयला चुराकर ही संतुष्ट है। कोई बोरों में नोट लेकर भी संतुष्ट नहीं है। अरे भई  ! सबकी अपनी -अपनी सीमा है।किसी एक का नहीं बीमा है , कोई तेज है ,कोई धीमा है। भ्रष्टाचार की जाँच कौन करे ? भ्रष्टाचार की जाँच किसी ईमानदार को क्यों दी जाएगी? उसे कोई अनुभव ही नहीं है। बिना अनुभव के वह जाँच कैसे करेगा? इसलिए महाभ्रष्टाचारी और महा बेईमान को इसका जिम्मा सौंपा जाता है। वह अपनी कलाकारी से कुछ ही समय में क्लीन चिट देकर अलग हो जाता हैं । यह भी खुश , वह भी खुश औऱ जिसने जाँच बिठाई वह तो महाखुश। इसे कहते हैं दूध का दूध और पानी का पानी। हंस का नीर क्षीर विवेक? धन्य मेरे भारत के भूषण अनेक।अब क्या , आगे -आगे देख । पीछे मुड़कर मत देख। करता रह ऐसे ही काम नेक ।

               भाँग कुँए में ही पड़ी हुई है। ऐसी- ऐसी जाँच समितियां हैं कि ईमानदार को चोर और भ्रष्टाचारी को चार दिन में चोर सिद्ध कर दें। बहुमत का जमाना है न ? बहुमत जिसे चाहे कुछ भी सिद्ध कर सकता है। गधे को सिंहासन पर बिठा सकता है और घोड़े को गधशाल में बंधवा सकता है। बस मूलमन्त्र यही है कि भ्रष्टाचार जिंदाबाद औऱ ईमानदारी मुरादाबाद। इस देश में भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत गहराई तक अपनी पैठ बना चुकी हैं।एक बात आज तक मेरी समझ में नहीं आई, कि जब देश के सभी नेता , मंत्री , बड़े -बड़े अधिकारी इतने ईमानदार हैं ,तो देश में नौ -नौ शहरों में कोठियाँ, बंगले , होटल , मॉल, कारखाने ,मिलें , अरबों खरबों की चल -अचल संपत्ति , सोना , हीरे ,जवाहरात, प्लॉट कहाँ से और कैसे आए? फिर भी ईमानदार के ईमानदार? क्या कोई नेता , मंत्री ,अधिकारी या व्यापारी ईमानदारी के वेतन और कमाई से इतना कर सकता है? शायद इसका एक ही जवाब होगा :नहीं कर सकता।

                फिर ? फिर ?? फिर    ???यह ईमानदारी का चोगा क्यों ? हालत वही है, जिसकी भी दुम उठाई मादा निकला। बस मौका न था , अन्यथा रहे बचे सभी बहती गंगा में हाथ धो लेते। लेकिन दुर्भाग्य ! अरे भई! खून तो सबका एक ही रंग का है , लाल। उसी लाल में छिपे हुए हैं कितने कमाल। जो आए दिन मचा रहे हैं धमाल। कोई कभी अंदर तो कुछ दिन में बहाल।फिर काटो गर्दनें और होते जाओ मालामाल।ऊपर से ओढ़ाते रहिए मखमल की शॉल। बेईमानी ही बनकर आएगी तेरी ढाल। बस जलती रहनी चाहिए गरीब के खून की मशाल।

 💐 शुभमस्तु !
 24.04.2020 ◆11.20 पूर्वाह्न
। www.hinddhanush.blogspot.in

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...