गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

मातृभूमि के मंदिर में [ गीत ]


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✍ शब्दकार ©
🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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इस  मातृभूमि  के  मंदिर में,
अब    गद्दारों  का  काम नहीं।
यदि   सरनाम    नहीं  करते,
कर   सकते हो बदनाम नहीं।।

रक्षक   पर  पत्थर   मार  रहे,
ये   तो  इंसाँ   का   धर्म  नहीं।
थूकना  प्रशासन पर अनुचित,
ये   मानवता  का कर्म  नहीं।।
जिसका    सूरज डूबता   यहाँ,
होती   फिर सुबहो- शाम नहीं।
इस   मातृभूमि   के  मंदिर  में,
अब    गद्दारों का  काम  नहीं।।

निज  थूथन  उठा भौंकते हो,
गीदड़   वनराज   नहीं बनते।
जब  पेड़ों  पर फल  आते हैं ,
वे  पेड़  नहीं   ऊपर तनते।।
आराम   दूसरों    का  छीने ,
मिलता उसकोआराम नहीं।
इस    मातृभूमि    के मंदिर में,
अब    गद्दारों  का काम नहीं।।

भाई   सम  हमने  मान  दिया,
समझो   हमको कमजोर नहीं।
घर बार ,धरा,धन-धाम  दिया,
उनसे   बनना   मुँहजोर नहीं।।
मत  चट्टानों    से    टकराना,
बच  पाए  हड्डी  - चाम नहीं।
इस     मातृभूमि  के  मंदिर  में,
अब    गद्दारों का  काम नहीं।।

गंगा-यमुना    के   पावन जल ,
कमतर   मत इन्हें  जान लेना। 
हिमगिरि     की ऊँची  चोटी को,
मिट्टी     का नहीं  मान  लेना।।
अपनी      औक़ात  नहीं भूलो ,
हनुमंत      करेंगे   काम  सही।
इस    मातृभूमि के  मंदिर में,
अब       गद्दारों का काम  नहीं।।

बकरी  -  भेड़ों    के   झुंडों पर ,
वनराज     एक     ही   भारी है।
मैं - मैं    करके   चिल्लाते  जो,
सुन   ले   दहाड़    जो  जारी है।।
ये 'शुभम'   भयानक भी इतना,
समझो   केवल गुलफ़ाम नहीं।
इस    मातृभूमि    के  मंदिर  में,
अब    गद्दारों     का   काम नहीं।।

💐 शुभमस्तु !©

08.04.2020 ◆5.15अप.

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