गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

हम जानते थे पहले ! [ गीत ]


◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
✍ शब्दकार ©
🍃 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

हम      जानते      थे   पहले,
पहचान    भी       लिया   है।
हम     भूल     में     नहीं  हैं ,
किसने   लहू     पिया     है।।

चेहरे    के       ये      मुखौटे ,
नित  रूप      ही      बदलते।
करनी        बुरी       सपोले ,
मन     से    नहीं    सँभलते।।
पैग़ाम      दे     अमन    का,
धोखा     सदा     किया    है।
हम     जानते   थे     पहले ,
पहचान  भी    लिया     है।।

तुम   दूध,      घी    पिलाओ ,
ये     जहर    ही      उगलते।
अपने     घरों    में      औंधे ,
उलटी   ही    चाल    चलते।।
मानव  का   जिस्म   पाकर ,
श्वानों  का    ही    हिया   है।
हम     जानते     थे   पहले,
पहचान    भी    लिया   है।।

हम    शांति     के   पुजारी,
है   ऐक्य    अपनी    शक्ति।
हम  राम -  कृष्ण    पूजक ,
माँ     भारती    की  शक्ति।।
इंसान         दूसरों        के ,
हित  में   सदा   जिया    है।
हम     जानते    थे   पहले ,
पहचान   भी    लिया   है।।

जिस  राह     से    हो  आते,
वह   मार्ग  तो   न   बदला  ?
जिस मुख  से खाना   खाते,
वह   द्वार   तो    न बदला??
ये      द्वार     सब      हमारे ,
इनको  न   क्यों   सिया   है ?
हम   जानते     थे      पहले,
पहचान   भी    लिया   है ।।


जिस    भारती    ने    जाया
उसको     न    तूने    जाना?
कीड़े!  ओ हेय !!   हवसी!!!
तेरा         नरक      ठिकाना।
महतारी ,   बहना,     खाला,
जूती     लगे      तिया    है।
हम     जानते     थे     पहले ,
पहचान     भी   लिया    है।।

खाते      हो     बर्तनों       में,
उनमें     ही     छेद     करते।
तव     प्राण      जो    बचाते ,
उनके    ही    प्राण     हरते।।
तुम   थूकते   हो   उन    पर ,
कैसा   सिला     दिया    है ?
हम    जानते    थे       पहले ,
पहचान      भी  लिया    है।।

मज़हब   से     पहले    इंसाँ, 
इंसान        का       तकाजा।
जो    देता       एक     रोटी ,
उस कर्ज़     को   निभाजा।।
तेरे     पत्थरों    के    बदले,
'शुभ '   फूल   ही    दिया है।
हम   जानते      थे     पहले,
पहचान   भी    लिया    है।।

💐 शुभमस्तु !

08.04.2020 ◆11.45पूर्वाह्न।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...