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✍ शब्दकार ©
🍃 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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हम जानते थे पहले,
पहचान भी लिया है।
हम भूल में नहीं हैं ,
किसने लहू पिया है।।
चेहरे के ये मुखौटे ,
नित रूप ही बदलते।
करनी बुरी सपोले ,
मन से नहीं सँभलते।।
पैग़ाम दे अमन का,
धोखा सदा किया है।
हम जानते थे पहले ,
पहचान भी लिया है।।
तुम दूध, घी पिलाओ ,
ये जहर ही उगलते।
अपने घरों में औंधे ,
उलटी ही चाल चलते।।
मानव का जिस्म पाकर ,
श्वानों का ही हिया है।
हम जानते थे पहले,
पहचान भी लिया है।।
हम शांति के पुजारी,
है ऐक्य अपनी शक्ति।
हम राम - कृष्ण पूजक ,
माँ भारती की शक्ति।।
इंसान दूसरों के ,
हित में सदा जिया है।
हम जानते थे पहले ,
पहचान भी लिया है।।
जिस राह से हो आते,
वह मार्ग तो न बदला ?
जिस मुख से खाना खाते,
वह द्वार तो न बदला??
ये द्वार सब हमारे ,
इनको न क्यों सिया है ?
हम जानते थे पहले,
पहचान भी लिया है ।।
जिस भारती ने जाया
उसको न तूने जाना?
कीड़े! ओ हेय !! हवसी!!!
तेरा नरक ठिकाना।
महतारी , बहना, खाला,
जूती लगे तिया है।
हम जानते थे पहले ,
पहचान भी लिया है।।
खाते हो बर्तनों में,
उनमें ही छेद करते।
तव प्राण जो बचाते ,
उनके ही प्राण हरते।।
तुम थूकते हो उन पर ,
कैसा सिला दिया है ?
हम जानते थे पहले ,
पहचान भी लिया है।।
मज़हब से पहले इंसाँ,
इंसान का तकाजा।
जो देता एक रोटी ,
उस कर्ज़ को निभाजा।।
तेरे पत्थरों के बदले,
'शुभ ' फूल ही दिया है।
हम जानते थे पहले,
पहचान भी लिया है।।
💐 शुभमस्तु !
08.04.2020 ◆11.45पूर्वाह्न।
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