शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

ग़ज़ल


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 ✍ शब्दकार ©
🌿 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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 इस    पार    सबने    देखा।
उस   पार   किसने  देखा??

जिंदा     रहेगा    जो     भी ,
उस     पार  उसने    देखा।

बदलाव       कुछ   बड़े    हैं,
वह  द्वार    हमने      देखा।

ऐसा     हुआ      न    पहले,
संसार       जिसने      देखा।

पाकीज़गी    का     परचम ,
फहराता      जग  ने    देखा।

औरों     की   जान    बख्शे,
भारत  को   तुमने    देखा !

दुश्मन  को  भी 'शुभम'  जो,
उपहार         उनने     देखा।

💐 शुभमस्तु !

19.04.2020 ◆10.45 

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