शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

समय -चक्र रुकता नहीं [ दोहा ]


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✍ शब्दकार ©
🦚 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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समय  नाम है ईश का,जगत झुकाता शीश।
सदा समय के साथ जो,होता वही  मनीष।।

सदा   समय से उदित हों,सूरज सोम नक्षत्र।
पवन चलाए श्वास को,हिलते हैं   तरुपत्र।।

समय - चक्र रुकता नहीं,सदा बदलता चाल।
सुख   दुःख  के काँटे  अथिर,वही कहाते काल।

दिन     जब  जाता रात का,आता है तम  घोर।
पुनः पवन निर्मल बहे,शुभा गमन नव भोर।।

समय -   सुई ऊपर चढ़े,   वही चले भू   ओर।
क्रमशः पुनि चढ़ती वही,छूती नभ के छोर।।

बुरा   समय   कहता नहीं, करता लघु संकेत।
समझ   उसे   चुप बैठिए,छिपा वहीं तव हेत।

बुरा     समय     संघर्ष का ,प्रेरक होता  मीत।
निर्भय    हो    संघर्ष    कर, होगी तेरी  जीत।।

देख     समय    के फेर को,चुप रह बैठें  आप।
शनैः - शनैः होंगे   शमित,तन मन के संताप।।

शुभ्र  काल  का आगमन, जबभी होता मित्र।
सद   सुगन्ध की वायु तब, फैलाती है इत्र।।

समय  चूकता जो मनुज, पछताता दिन रात।
घड़ी  देख खिलती कली, महके संध्या प्रात।।

'शुभम'      काल  वासंतिका,फूलें फूल अपार।
पतझड़    में  पल्लव झड़ें, देती पवन बुहार।।

💐 शुभमस्तु !

14.04.2020 ◆11..पूर्वाह्न

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