शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

चिड़ियाघर में संसद! [ दोहे ]


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✍ शब्दकार ©
🐅 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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चिड़ियाघर में एक दिन, संसद लगी विराट।
पशु - पक्षी  बतिया रहे, जैसे मानव -  हाट।।

'कहाँ   गया  ये आदमी,सूने सड़क बजार।
हमें  देखने आ रहे, नहीं,  करें क्या  यार??'

लोमशजी की बात ने,खींचा  सबका  ध्यान।
जम्बुक जी  कहने लगे ,सही बात श्रीमान।।

क्या  विशेष कारण बना, घर में मानव  बंद।
शुतुरमुर्ग बोला वचन, हम सब हैं स्वच्छन्द।।

चलो   शेर   से हम कहें  ,  बोले भालू  राम।
खैर   ख़बर लेने    चलें,शहर गली हर गाम।।

हाथी  चीता ने किया, अनुमो दित प्रस्ताव।
वानर  उछला डाल पर,भरे हृदय में चाव।।

देख  शेर ने माँद पर,  खड़े सैकड़ों  जीव।
सोचा    कैसे  जीव ये, आए तोड़ी  सींव।।

उठ   जा   रानी शेरनी ,बाहर जाकर देख।
क्यों   आए हैं माँद पर,चीता  हाथी शेख।।

जो  आज्ञा कह शेरनी,  बाहर  आई   आप।
हिरन मूस  खरगोश की,टाँगें थर-थर काँप।।

चीते   से कहने लगी,  सुघर शेरनी   बोल ।
देवर जी  क्या कष्ट है,निर्भय हो मुँह खोल।।

भाभी    भैया   से कहो ,मानव क्यों घरबंद।
सभी    चलेंगे  देखने ,पहले  था स्वच्छन्द।

गई   माँद  में  शेरनी,  लेटे    थे वन राज।
आए    बाहर शेर जी,लगा शीश पर ताज।।

चलो  बंधु स्वीकार है , तुम सबका प्रस्ताव।
मिल जुल  कर हैं ढूँढ़ते,क्या है उसको घाव।।

गली   सड़क वन बाग में,फैल गए वे जीव।
इध र गया कोई उधर, बिखरे  बेतरतीव।।

घर , दुकान,  शाला सभी, देखे ताले बंद।
पुलिसमैन  तैनात हैं,ठौर ठौर स्वच्छन्द।।

जो  बाहर आता कहीं,उस पर दंड विधान।
सख़्ती से  सारी पुलिस ,  देती डंडा  तान।।

बैठ  कार में घोषणा, करते  हैं दिन  रात।
कोरोना  के कोप से, बच ले मानव जात।।

लगा मुखौटा नाक मुँह,धो साबुन से हाथ।
घर के अंदर बैठजा,निज परिजन के साथ।

संक्रामक यह रोग है ,  चलो यहाँ   से  दूर।
चिड़ियाघर अपना भला,है मानव मजबूर।।

वाणी     सुनकर   शेर की,  माना है आदेश।
पिजड़ों में जाकर घुसे,त्याग मनुज से द्वेष।।

मानव  विपदाग्रस्त  है,पशु पक्षी निरुपाय।
खोजेगा   वह   शीघ्र ही,कोई 'शुभम'उपाय।

💐 शुभमस्तु !

19.04.2020 ◆4.15 अपराह्न।

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